अभिभावकों से खुली लूट
लखनऊ के प्राइवेट स्कूलों में पुस्तकों के नाम पर अभिभावकों से खुली लूट हो रही है। साथ ही स्कूल प्रबंधन बुक सेलर्स से साठगांठ कर चुनिंदा दुकानों पर ही किताबें बेच रहे हैं, वही जिससे अभिभावकों को महंगी रेफरेंस बुक और स्टेशनरी खरीदने पर मजबूर होना पड़ रहा है।
निजी स्कूलों में नया शैक्षिक सत्र शुरू हो गया है। हर बार की तरह किताबों के लिए दुकानों पर लंबी कतारें लग रही हैं। उप्र स्ववित्तपोषित स्वतंत्र विद्यालय अधिनियम-2018 के तहत स्कूल किसी खास दुकान से किताबें खरीदने को मजबूर नहीं कर सकते। ऐसे में स्कूलों की बुकलिस्ट भी सार्वजनिक है।
इसके बावजूद प्रकाशकों से साठगांठ की बदौलत तमाम निजी स्कूलों की किताबें चुनिंदा दुकानों पर ही मिल रही हैं। कहीं किताबों के साथ स्टेशनरी का पूरा सेट खरीदना पड़ रहा है तो कहीं महंगी रेफरेंस बुक के कारण अभिभावकों की जेब ढीली हो रही है।
सीबीएसई की गाइडलाइन के मुताबिक, स्कूलों में सिर्फ एनसीईआरटी की किताबें चलाने के निर्देश दिए हैं। वही केंद्रीय विद्यालय संगठन के सभी स्कूलों में इसका पालन होता है। केवी में निजी प्रकाशकों की रेफरेंस बुक खरीदने की बाध्यता नहीं है। साथ ही इसके उलट निजी स्कूलों ने बुक लिस्ट में निजी प्रकाशकों की महंगी रेफरेंस बुक भी शामिल कर ली हैं। वही इसी तरह जूनियर कक्षा की बुक लिस्ट में भी भी निजी प्रकाशकों की कई ऐसी महंगी बुक शामिल हैं, जिनका सालभर में एक बार भी इस्तेमाल नहीं होता।
ज्यादातर निजी स्कूलों की किताबें खास दुकानों पर ही मिलती हैं। ऐसे में कमाई के लिए दुकानदार इसका पूरा फायदा भी उठाते हैं। इन दुकानों पर अभिभावकों को किताबों के साथ महंगी स्टेशनरी का भी पूरा सेट खरीदना पड़ रहा है।
सरकारी गाइडलाइंस के मुताबिक, स्कूल पांच वर्ष से पहले यूनिफॉर्म कोड नहीं बदल सकते, लेकिन पुस्तकों के लिए ऐसा कोई नियम नहीं है। इसका फायदा उठाकर शहर में कई शाखाओं वाले एक निजी स्कूल ने हर टर्म एग्जाम के बाद किताबें बदलने की प्रक्रिया शुरू की है। साथ ही इस तरह एक वर्ष में तीन बार किताबें बदली जाएंगी। स्कूल में नए पब्लिकेशन की पुस्तकें चल रही हैं। पुस्तको के सेट के साथ ऐक्टिविटी किट भी खरीदना जरूरी है।
स्कूलों और निजी प्रकाशकों ने अभिभावकों की जेब काटने के लिए कस्टमाइज पुस्तकों का खेल भी शुरू कर दिया है। वही इन किताबो में पूरा कंटेंट सामान्य किताबों जैसा ही होता है, साथ ही लेकिन कवर पेज और चैप्टर आगे-पीछे कर दिया जाता है। सामान्य पुस्तके 200 से 250 रुपये में मिलती हैं, जबकि ये कस्टमाइज 500 से 550 रुपये में बेची जाती हैं।
अनएडेड प्राइवेट स्कूल असोसिएशन उत्तर प्रदेश की सचिव माला मेहरा का मानना है कि सीआईएससीई से संबद्ध स्कूलों में पुस्तकों के लिए कोई साफ दिशा-निर्देश नहीं है। बोर्ड की ओर से प्रकाशक भी तय नहीं होते। स्कूल खुद ही फैसला करते हैं कि कौन सी पुस्तके चलेंगी। ऐसे में कुछ स्कूलों की किताबें ज्यादा महंगी मिलती हैं तो कुछ में थोड़ी कम महंगी। स्कूलों को ऐसी किताबें चलानी चाहिए, जो अभिभावक आसानी से खरीद सकें। सरकार को भी कम से कम तीन साल पर किताबें बदलने का शासनादेश जारी करना चाहिए।
लखनऊ अभिभावक विचार परिषद के अध्यक्ष राकेश कुमार का कहना है कि स्कूल हर नए सत्र में फीस, कॉपी-किताबों और यूनिफॉर्म की खरीद के दौरान अभिभावकों को लूटने का कोई तरीका नहीं छोड़ते। कई मामलों में नियम साफ नहीं है और शिकायत के लिए पर्याप्त माध्यम भी नहीं है। डीआईओएस और बीएसए को हेल्पलाइन नंबर जारी करना चाहिए, ताकि अभिभावक समस्या बता सकें।