लोहड़ी उत्सव से जुड़े 7रोचक तथ्य, शादी के बाद पहली लोहड़ी का क्‍या है महत्‍व

हर साल एक ही दिन लोहड़ी मनाई जाती है। मकर संक्रांति की तरह इसके दिन में बदलाव नहीं होता है। हर साल 13 जनवरी को यानी पौष मास के अंतिम दिन लोहड़ी का पर्व होता है।

 लोहड़ी पर्व में अग्नि का विशेष महत्व होता है। इस दिन अग्नि के चारों ओर घूमते हुए नई फसल की आहूतियां दी जाती हैं और इस आहूति के जरिए ईश्वर को धन्यवाद दिया जाता है।

 लोहड़ी के दिन विशेष पकवान बनते हैं, जिसमें गजक, रेवड़ी, मुंगफली, तिल-गुड़ के लड्डू, मक्का की रोटी और सरसों का साग प्रमुख होता है।

 लोहड़ी से कुछ दिन पहले से ही छोटे बच्चे लोहड़ी के गीत गाकर घर-घर से लोहड़ी के लिए लकड़ियां एकत्र करने लगते हैं।

 लोहड़ी उत्सव उस घर में और खास होता है, जिन घर में नई शादी हुई हो या बच्चा हुआ हो। इन घरों में लोहड़ी विशेष उत्साह के साथ मनाई जाती है। लोहड़ी के दिन बहन और बेटियों को मायके बुलाया जाता है।

 लोहड़ी उत्सव संत कबीर की पत्नी लोई की याद में यह पर्व मनाया जाता है। यह भी मान्यता है कि सुंदरी एवं मुंदरी नाम की लड़कियों को राजा से बचाकर एक दुल्ला भट्टी नामक डाकू ने किसी अच्छे लड़कों से उनकी शा‍दी करवा दी थी।

वैसाखी की तरह लोहड़ी का सबंध भी पंजाब के गांव, फसल और मौसम से है। इस दिन से मूली और गन्ने की फसल बोई जाती है। इससे पहले रबी की फसल काटकर घर में रख ली जाती है। खेतों में सरसों के फूल लहराते दिखाई देते हैं।