Ayodhya राम मंदिर : पटेल चाहते थे राम लला की मूर्ति रहे, नेहरू चाहते थे हटाना

अगर पटेल न होतेए तो शायद राम मंदिर भी न होता या इस पूरे आंदोलन की दिशा और दशा ही अलग होती। याद रहे कि पटेल ही थेए जिन्होंने 12 नवंबर, 1947 को सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार का विचार रखा और इस विषय पर बनी समिति के अध्यक्ष भी बने। नेहरू इस शिव मंदिर के जीर्णीद्धार के भी खिलाफ थे। दुर्भाग्य से पटेल मंदिर निर्माण कार्य पूरा होने से पूर्व ही चल बसे। जब मंदिर बन कर तैयार हो गया और इसके उद्घाटन के लिए राष्ट्रपति बाबू राजेंद्र प्रसाद को आमंत्रित किया गयाए तो नेहरू ने उनके वहां जाने का भी विरोध किया। यह बात अलग है कि उन्होंने नेहरू की परवाह नहीं की।

राम मंदिर और हिंदू हितों का समर्थन करने वालों को ‘सांप्रदायिक’ बताने और इससे मुसलमानों को डराने का इतिहास पुराना है। अंग्रेजों के प्रिय वामपंथी और मुस्लिम तुष्टीकरण के पैरोकार जवाहर लाल जवाहरलाल नेहरू और उनके वामपंथी चेलों ने यह नेरेटिव भारत विभाजन से पहले ही शुरू कर दिया था।

कांग्रेस और मुस्लिम लीग की बंदरबांट के कारण हुए भारत के बंटवारे और भयंकर खून-खराबे के बाद जब दिसंबर 1949 में कुछ धर्मप्राण लोगों ने अयोध्या में हिंदू मंदिर तोड़ कर बने विवादित ढांचे में राम लला की मूर्ति स्थापित कर दी, तो बजाए हिंदुओं की भावनाएं समझने के नेहरू ने तबके मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत पर मूर्ति हटवाने का दबाव बनाना शुरू कर दिया। कहना न होगा इसके लिए बहाना इसी नेरेटिव को बनाया गया।

इस संबंध में नेहरू और पंत के पत्राचार के बारे में बात करने से पहले जान लेते हैं कि तब माहौल क्या था और हिंदुओं में गुस्सा क्यों था। तब मुसलमान कांग्रेस को हिंदुओं की पार्टी मानते थे। 1946 के प्रोविंशियल इलेक्शन में यूनाइटेड प्रोविंस (तब उत्तर प्रदेश का यही नाम था) के मुसलमानों ने मुस्लिम लीग को भरपूर समर्थन दिया और हर मुस्लिम बहुल इलाके से लीग को भर-भर कर वोट मिले। यूपी के मुसलमान पाकिस्तान बनवाने की कवायद में सबसे आगे थे और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी हिंदू विरोधियों की मक्का बना हुई थी। मुसलमानों के घरों में खुलेआम लीग के झंडे फहराए जाते थे और मुहम्मद अली जिन्नाह की तस्वीरें लगाई जाती थीं। जाहिर है ऐसे में हिंदुओं में विभाजनकारियों के प्रति गुस्सा पूरी तरह जायज था।

मुसलमान कांग्रेस को हिंदुओं की पार्टी मानते थे, लेकिन विभाजन के बाद नेहरू और उनके वामपंथी चेलों ने इसे मुस्लिम लीग से भी ज्यादा मुसलमानपरस्त बना दिया। इसी आलोक में देखें कि विवादित ढांचे में मूर्ति रखे जाने पर नेहरू ने पंत को क्या पत्र लिखा। उन्होंने लिखा, ”मुझे खुशी होगी यदि आप मुझे अयोध्या की स्थिति के बारे में जानकारी देते रहें। जैसा कि आपको पता है मैं इस विषय को अखिल भारतीय स्तर और विशेष कर कश्मीर पर इसके असर को विशेष महत्व देता हूं।”

एक अन्य पत्र में नेहरू लिखते हैं, ”मैं अयोध्या मसले से बहुत व्यथित हूं…फैजाबाद के जिला अधिकारी के. के. नायर ने किसी हद तक दुर्व्यवहार किया (विवादित ढांचे से मूर्ति हटाने से इनकार कर दिया)… मैं आश्वस्त हूं कि अगर हम अपनी ओर से सही व्यवहार करें तो हमारे लिए पाकिस्तान से निपटना आसान होगा। आज कई कांग्रेसी पाकिस्तान को लेकर सांप्रदायिक हो गए हैं और यह भारत में मुसलमानों के प्रति उनके व्यवहार में भी झलकता है।“

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