Ram Mandir: किसी ने अपनी सत्ता खोई तो किसी ने हजारों कारसेवक जुटाए, जानें राम मंदिर आंदोलन के बड़े चेहरे

Ayodhya Andolan Faces: अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का सफर काफी चुनौतियों भरा रहा है। बाबरी विवाद, आदालतों में चली लंबी लड़ाई और फिर शीर्ष अदालत के फैसले के बाद मंदिर का निर्माण शुरू होना। आइए जानते हैं उन हस्तियों के बारे में जिनकी बदौलत यह शुभ दिन आया है…

अयोध्या में 22 जनवरी को राम मंदिर की भव्य प्राण प्रतिष्ठा हो गई। इस ऐतिहासिक मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मौजूद रहे। इसके अलावा उन चेहरों को भी कार्यक्रम का निमन्त्रण मिला था, जिन्होंने राम मंदिर आंदोलन में अपना अमूल्य योगदान दिया था। हालांकि, मंदिर आंदोलन के जरिए मंदिर का रास्ता प्रशस्त करवाने वाले कई सियासी सूरमा अब इस दुनिया में भी नहीं हैं, लेकिन उनकी भूमिका की अक्सर चर्चा होती है।

आइये जानते हैं राम मंदिर आंदोलन के 10 बड़े चेहरों के बारे में…

रथ यात्रा के जरिए लालकृष्ण आडवाणी बने सबसे बड़ा चेहरा
राम मंदिर के पक्ष देश में माहौल बनाने के लिए भाजपा के दिग्गज नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने 1990 में सोमनाथ से अयोध्या के लिए रथ यात्रा निकाली थी। इसी यात्रा से अयोध्या आंदोलन को धार मिली थी। देश के कई शहरों और गांवों से लोग अयोध्या में कार सेवा करने के लिए पहुंच रहे थे। अयोध्या समेत देश के कई हिस्सों में ‘राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’ का नारा गूंज रहा था। आडवाणी अयोध्या आंदोलन से भाजपा के सबसे बड़े हिंदुत्व का चेहरा बन गए थे। विध्वंस के दौरान आडवणी अयोध्या में मौजूद थे। विवादस्पद ढांचा विध्वंस मामले में आरोपी बनाए गए, लेकिन अदालत ने बाद में बरी कर दिया। वर्तमान में आडवाणी अपनी उम्र के कारण सक्रिय राजनीति से दूर हैं।

आंदोलन को धार देने वाले मुरली मनोहर जोशी
राम मंदिर आंदोलन से जुड़ा एक अहम नाम मुरली मनोहर जोशी है। पूर्व उप-प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के बाद मंदिर आंदोलन में जोशी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। 6 दिसंबर 1992 को जब विवादित ढांचा गिराया गया तो जोशी भी अयोध्या में थे। जोशी ने अपने बेबाक भाषणों से आंदोलन को काफी तेज किया था। आडवाणी की तरह वे भी आरोपी बनाए गए, लेकिन अदालत ने उन्हें भी बरी कर दिया। अब आडवाणी की तरह ही सक्रिय राजनीति से दूर हैं।

राम मंदिर के लिए सत्ता गंवाने वाले कल्याण सिंह
भाजपा के दिग्गज नेताओं में शुमार रहे कल्याण सिंह जोकि राजस्थान और हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल भी रहे थे। सिंह दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। राममंदिर आंदोलन में उनकी सक्रिय भूमिका ने भाजपा को एक नई पहचान दी। वर्ष 1992 में सुप्रीम कोर्ट को विवादित ढांचे की सुरक्षा का हलफनामा दिया। विवादित ढांचा टूटने के बाद उनकी सरकार बर्खास्त कर दी गई। कल्याण बाद में भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। फिर उनका भाजपा से आना जाना लगा रहा। देश में मोदी सरकार आने के बाद वह राज्यपाल बनाए गए। 21 अगस्त 2021 को कल्याण सिंह ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

कट्टर हिंदुत्व का चेहरा विनय कटियार
राम मंदिर आदोलन को लेकर विनय कटियार के तेवर शुरू से सख्त थे। कटियार कट्टर हिंदुत्व का चेहरा माने जाते थे। विध्वंस के दौरान विनय कटियार अयोध्या में मौजूद थे और वो इस मामले में आरोपी थे, लेकिन अदालत से बरी हो गए। कटियार पर कारसेवकों को विवादित ढांचा तोड़ने के लिए उकसाने का आरोप लगा था। वो मौजूदा समय में भाजपा के सदस्य भले ही हैं, लेकिन पार्टी और सरकार दोनों में उनकी भूमिका नहीं है।

आंदोलन से उभरीं उमा भारती
उमा भारती को राजनीतिक पहचान अयोध्या आंदोलन से मिली। विध्वंस के दौरान उमा भारती अयोध्या में मौजूद रहीं और वह भी इस मामले में आरोपी थीं। हिंदुत्व का चेहरा और फायर ब्रांड नेता के तौर पर उनकी पहचान बन चुकी थी। मौजूदा समय में वह भाजपा में सिर्फ नेता हैं। उन्होंने मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में चुनाव लड़ने से मना कर दिया था।

बाल ठाकरे
शिवसेना प्रमुख रहे बाल ठाकरे अपने तेज तर्रार भाषणों की वजह से देश भर में सुर्खियों में रहते थे। 6 दिसंबर 1992 को जब विवादित ढांचा गिराया गया तो बाल ठाकरे ने बड़े गर्व से अयोध्या में शिव सैनिकों की मौजूदगी की बात स्वीकार की थी। अपने बयानों में वह अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की बात करना नहीं भूलते थे। बाल ठाकरे के समर्थक उन्हें हिंदू हृदय सम्राट कहते थे।

हजारों कारसेवक जुटाने वाले अशोक सिंघल
संघ के अनुषांगिक संगठन विहिप के मुखिया रहे अशोक सिंघल ने राम मंदिर आंदोलन में केंद्रीय भूमिका निभाई। सिंघल 20 साल तक विश्व हिन्दू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। इंजीनियर की नौकरी छोड़कर उन्होंने समाज सेवा का रास्ता चुना। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन में सिंघल की महत्वपूर्ण भूमिका रही। 1984 में दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित धर्म संसद का सिंघल ने संचालन किया। यहीं राम जन्मभूमि आंदोलन की रणनीति तय की गई। सिंघल ने योजना बनाकर कारसेवकों को जोड़ना शुरू किया। देश भर से उन्होंने 50 हजार कारसेवक जुटाए। 1992 में विवादित ढांचा गिराने वाले कारसेवकों का नेतृत्व करने का आरोप सिंघल पर ही लगा था। सिंघल अदालत से अंततः बरी हुए।

महंत रामचंद्रदास परमहंस
हिंदू पक्ष के महंत रामचंद्र दास परमहंस ही वर्ष 1949 में विवाद शुरू होने और वर्ष 1992 में बाबरी ढांचा के विध्वंस होने मुख्य भूमिका में रहे। कभी हिंदू महासभा से जुड़े रहे और परमहंस 1989 में गठित राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष बने। राम मंदिर निर्माण के लिए दिल्ली में 1984 में हुए धर्मसंसद की भी अध्यक्षता की। उनकी अध्यक्षता में जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन हुआ। उनका निधन 2003 में हुआ। अंत समय तक राम मंदिर निर्माण के लिए संघर्ष करते रहे।

राम विलास वेदांती
अयोध्या आंदोलन के चेहरे के तौर राम विलास वेदांती का नाम भी आता है। अयोध्या के बड़े साधुओं में नाम आता है। राम मंदिर आदोलन ने वेदांती को राजनीतिक पहचान दी और वे भाजपा सांसद बने थे।

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