बचा लो मुझे. शेख हसीना ने रोते हुए पीएम नहीं काका बाबू को किया था फोन, फिर मोदी ने किया था एक्शन

बांग्लादेश पर अटैक करने वाली थी इंडियन आर्मी, तब जाकर शेख़ हसीना सुरक्षित भारत आईं

यूं ही नहीं शेख हसीना की भारत में हुई थी सुरक्षित लैंडिंग, मोदी से गुहार लगाने के बाद इंडियन आर्मी ने दिया था बांग्लादेश को अल्टीमेटम

शेख हसीना की जान बचाने में इंडियन आर्मी का बड़ा रोल, अब इंडिया के इशारे पर चलेगा बांग्लादेश, पीएमओ ने नई सरकार को भेजा अल्टीमेटम

जानिए कौन हैं शेख हसीना के काका बाबू, जिनकी हर बात मानते हैं पीएम मोदी

पड़ोसी देश बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद शेख हसीना भाग कर भारत नहीं आई थीं बल्कि उनकी जान महफूज करने का फैसला मोदी सरकार का था। जब बांग्लादेश में शेख हसीना के ऊपर सेना और वहां के कुछ तथाकथित कट्टरपंथियों ने दवाब बना दिया था तब शेख हसीना ने अपनी जान बचाने के लिए इंडिया में फोन घुमाया था। शेख हसीना ने काका बाबू को फोन पर रोते हुए अपनी जान बचाने की गुहार लगाई थी। तब जाकर काका बाबू ने पीएमओ में बात की थी और फिर घंटे भर के भीतर ही इंडियन आर्मी ने बंगलादेश पर अटैक करने के लिए कूच कर दी। जब बांग्लादेश को भारतीय सेना द्वारा अटैक करने की भनक लगी तो वहां की सेना और कट्टरपंथी घुटनों तले आ गए और उन्होंने भारत की हर बात मानने को कहा। काका बाबू ने शेख हसीना को सुरक्षित भारत भेजने की बात कही थी। शेख हसीना के भारत से सहयोग लेने की ये कहानी एक दम दिलचस्प है। कुछ समय के लिए ये बातें आपको फिल्मी लग सकती हैं लेकिन ये पूरी तरह सही है। हम आपको विस्तार पूर्वक इस घटना के बारे में तो बताएंगे ही लेकिन उससे पहले आप हमें बता दीजिए कि क्या बांग्लादेश की हिंसा को काबू में लेने के लिए मोदी सरकार को एक्शन लेना चाहिए। अपना जवाब हमें कमेंट जरूर करें।
बता दें कि ऐसा पहली बार नहीं है कि हसीना के जीवन में इतना बड़ा तूफ़ान आया हो और वह देश छोड़कर भारत आ गई हो।इससे पहले 1975 में जब उनके पिता और बांग्लादेश के संस्थापक मुजीबुर रहमान, उनकी मां और तीन भाइयों का क़त्ल कर दिया गया था, तब भी वो यहां आईं थीं।इंदिरा गांधी ने हसीना और उनके परिवार को भारत में राजनीतिक शरण दी। वो 24 अगस्त 1975 को एयर इंडिया के विमान से अपने परिवार के साथ दिल्ली पहुंची थीं। इंडिया गेट के पास पंडारा पार्क के नजदीक उन्हें एक फ्लैट दिया गया था। उनकी सुरक्षा में दो तेज-तर्रार अफसरों को भी तैनात किया गया था। भारत में करीब 6 साल रहने के बाद हसीना 1986 में बांग्लादेश लौटीं। वो प्रधानमंत्री बनीं और धीरे-धीरे उनका जीवन पटरी पर आया।हालांकि हसीना के जीवन में यह शांति ज्यादा दिन तक नहीं टिका। 2009 में वो एक और बड़े तूफ़ान से गुजरीं। बांग्लादेश में पैरामिलिट्री फोर्स ने बगावत कर दिया। पूरे देश में हिंसा शुरू हो गई। आर्मी के कई बड़े अफसरों को मार गिराया गया। अविनाश पालीवाल के किताब ‘इंडियाज नीयर ईस्ट: ए न्यू हिस्ट्री’ में लिखा हुआ है कि उस समय भारत के वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी थे। शेख हसीना ने आधी रात में प्रणव मुखर्जी को फ़ोन किया और रुंधे गले से कहा कि वो मुसीबत में हैं और मदद चाहिए।शेख हसीना प्रणव मुखर्जी को काका बाबू कहकर बुलाती थीं। क्योंकि मुखर्जी बंगाल से आते थे और यह बांग्लादेश से सटा हुआ है। प्रणब मुखर्जी अपनी आत्मकथा ‘कोलिशन इयर्स’ में लिखते हैं कि उन्हें लग गया था कि बांग्लादेश में कुछ भयानक होने वाला है। उन्होंने वहां के जनरल मोईन यू अहमद को आश्वासन दिया कि हसीना उन्हें पद से नहीं हटाएंगी। एक हाई लेवल मीटिंग करके प्रधानमंत्री को पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी गई। भारत सरकार ने यह तय किया कि किसी भी कीमत पर शेख हसीना पर कोई आंच नहीं आने दिया जायेगा। उनके सुरक्षित रेस्क्यू के लिए प्लान तैयार किया गया। भारत ने अपनी सेना बांग्लादेश में भेजने की तैयारी कर ली थी। बंगाल के कलाईकुंडा एयरफोर्स पर 1000 पैराट्रूपर्स भेजे गए थे।इंडियाज नीयर ईस्ट: ए न्यू हिस्ट्री’ में लिखा हुआ है कि बात इतनी बढ़ गई थी कि इंडियन आर्मी ने फर्स्ट लाइन ऑफ अटैक को अत्याधुनिक हथियार तक दे दिए। इसके बाद भारतीय सेना के टॉप अफसर और डिप्लोमेट्स ने बांग्लादेश आर्मी से बात की। उन्हें सख्त चेतावनी दी गई। विद्रोह थम गया। भारत को न सेना भेजनी पड़ी और न शेख हसीना भारत आईं। लेकिन इस बार जब शेख हसीना भारत आई तो कुछ इसी प्रकार की कयास बाजी लगाई जा रही है।

ब्यूरो रिपोर्ट Tnf Today

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