दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने एक बहुत आवश्यक आदेश को ज़ारी किया है कि ड्यूटी पर प्रविस्तारण के दौरान कर्मचारी बीमार अथवा शारीरिक असमर्थता का शिकार होता है तो उसका वेतन रोकना गैर कानूनी है। उसे इस दौरान का पूरा वेतन मिलना चाहिए।
कोर्ट ने यह फैसला रेलवे सुरक्षा फोर्स में तैनात एक कॉन्स्टेबल की प्रार्थना को हामी भरते हुए दिया।
जस्टिस संजीव सचदेवा एवं जस्टिस मनोज जैन की बेंच ने कहा, आवेदनकर्ता कॉन्स्टेबल पिछले सात वर्षों से अपने हक के पैसे के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे है। बेंच ने केन्द्र सरकार को निर्देश दिया कि वह पीड़ित को 12 सप्ताह के भीतर बकाया वेतन का भुगतान करें वरना कार्यवाही हो सकती है। बेंच ने यह भी कहा कि अगर सीमित अवधि में का पगार भुगतान नहीं किया जाता तो इस राशि पर केंद्र सरकार को साढ़े सात फीसदी के ब्याज का अत्यधिक भुगतान भी करना होगा।
हाईकोर्ट ने बयान जारी करते हुए कहा कि विभाग की गलती कॉन्स्टेबल नहीं भुगतेगा : बेंच ने कहा कि कर्मचारी लगातार सम्बद्ध विभाग से अपनी जांच कराने के लिए अनुरोध करता रहा, लेकिन उसकी जांच के लिए मेडिकल बोर्ड गठित करने में लगभग एक साल का समय लग गया। इसमें कॉन्स्टेबल की गलती नहीं थी। विभाग को मेडिकल बोर्ड गठित कर जांच करानी चाहिए थी, इसलिए सरकार व रेलवे तय समय के भीतर कॉन्स्टेबल को उसकी वेतन दे।
आवेदनकर्ता रेलवे सुरक्षा फोर्स में वर्ष 2012 में कांस्टेबल पद पर नियुक्त हुआ था उस समय पर वह कांस्टेबल स्वस्थ था पर 2015 में उससे सुनने में दिक्कत होने लगी। उन्होंने उसी समय रेलवे हॉस्पिटल में टेस्ट कराई पर अल इंडिया मेडिकल असोसिएशं द्वारा जाँच कराने के बाद पता चला कि वाएं कान की सुनने की क्षमता बेहद कम है,लेकिन केंद्र सरकार और गठित संभंधित बोर्ड ने एक साल का समय दिया और उस कांस्टेबल को ड्यूटी नही मिली, इतना ही नही उसका वेतन भी रोक दिया गया, पर उस कांस्टेबल ने हार नही मानी और केस लड़ा और जीत भी गया हाईकोर्ट के आदेश अनुसार अब सरकारी कर्मचरियो का वेतन बंद नही किया जायेगा।