ऐसा स्थान या इमारत जो खंडित हो गयी हो या लम्बे समय से उसमे लोगो का आना-जाना कम हो उसे खंडहर कहतें हैं।
खंडहर नाम सुनते ही मन में अजीब-सी इमेज बनती है, जिसे लोग डरावनी जगह भी कह देते हैं, हालांकि ” मनुष्य का स्वभाव ही सुन-सान जगह को देखकर डराबना घोषित कर देता है, परन्तु आप ये नहीं जानते यह जगह मन को सुकून भी पहुँचती हैं। ऐसी जगहों पर अक्सर
शिल्पाकृतियाँ भी देखने को मिल जाती हैं जो की हमारी संस्कृति से रिलेटिव होती हैं अक्सर ऐसी जगहों पर भगवान शिव एवं भगवान बुद्ध की शिल्प पर बनी या शिल्प से बनी आकृतियाँ देखने को मिलती हैं जो की ध्यानमुद्रा का प्रतीक कहलाती हैं ऐसी जगहों पर बैठकर आप ध्यान (योग) कर सकतें हैं, जोकि आपको प्रकृति से जोड़ती है, ऐसी जगहों पर अक्सर चहचहाती चिड़ियाँ और पेड़ की छाया इन खंडहर को सजाती हुई दिखाई पड़ती हैं।
हमारे देश का प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय
हमारे देश में बहुत-सी ऐसी जगाहें हैं जहाँ देश-विदेश के लोग घूमने आते हैं, शिक्षा से ही शुरुआत करते हैं हमारे देश का प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय प्राचीन समय में उच्च शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विख्यात केन्द्र था। महायान बौध धर्म के इस शिक्षा-केन्द्र में हीनयान बौद्ध-धर्म के साथ ही अन्य धर्मों के तथा अनेक देशों के छात्र पढ़ते थे। प्रसिद्ध ‘बौद्ध सारिपुत्र’ का जन्म यहीं पर हुआ था।
इसका वर्तमान छेत्रफल
इसका छेत्रफल वर्तमान बिहार राज्य में पटना से 88.5 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व और राजगीर से 11.5 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। इस महान बौद्ध विश्वविद्यालय के खंडहर इसके प्राचीन वैभव का बहुत कुछ अंदाज़ करा देते हैं। अनेक पुराभिलेखों और सातवीं शताब्दी में दरबे के इतिहास को पढ़ने आये चीनी यात्री ह्वेनसांग तथा इत्सिंग के यात्रा विवरणों से इस विश्वविद्यालय के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। यहाँ 10,000 छात्रों को पढ़ाने के लिए 2,000 शिक्षक थे। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 7 वीं शताब्दी में यहाँ जीवन का महत्त्वपूर्ण एक वर्ष एक विद्यार्थी और एक शिक्षक के रूप में व्यतीत किया था।
अपनी संस्कृति की देख-रेख
यह खंडहर नहीं बस हमारे दिखने का नजरिया है यह हमारी जिम्मेदारी है अपनी संस्कृति की देखभाल करना।