आगरा के किनारी बाजार में चांदी के कारखाने में लगी भीषण आग ने दो लोगों की जान ले ली। हादसे के बाद ये साफ हो गया कि पुराने शहर के कई इलाके आग की चपेट में आने के कगार पर हैं, मगर बचाव के कोई पुख्ता इंतजाम नहीं हैं।
संकरी गलियों में चल रहे हैं बड़े-बड़े कारखाने:
फुटपाथ से सटे इन इलाकों में बहुमंजिला इमारतों के अंदर गलाई और टंच जैसे खतरनाक काम हो रहे हैं। दुकानें, शोरूम, गोदाम – सब कुछ इन्हीं बिल्डिंग्स में ठुंसे हुए हैं, मगर आग बुझाने की व्यवस्था शून्य है।
दमकल कैसे पहुंचे जब गलियां ही एक फीट चौड़ी हों?
चौबेजी का फाटक और उसके आस-पास की गलियां इतनी संकरी हैं कि न तो दमकल वहां तक पहुंच सकती है और न ही लोग आग लगने पर निकल सकते हैं। एलपीजी सिलेंडरों को स्टोर कर रखा जाता है, जो हादसे को न्योता देने जैसा है।
ऐसे इलाके सबसे ज्यादा खतरे में हैं:
- सिंधी बाजार से फुव्वारा, फुलट्टी, रावतपाड़ा, दरेसी तक की बेलगाम मार्केट्स
- नमक की मंडी, सेठ गली जैसी तंग गलियों में बने 10-20 दुकानों वाले बाजार
- कोतवाली क्षेत्र में चल रही चांदी, जूते, कपड़े, दवाओं और खाद्य सामग्री की दुकानें
सीएफओ का दावा:
फायर ऑफिसर देवेंद्र सिंह का कहना है कि समय-समय पर बाजारों में चेकिंग होती है, और अनियमितता मिलने पर नोटिस जारी किए जाते हैं। लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही कहती है।
जरा सी चिंगारी, और तबाही तय!
इन बाजारों में अगर आग लगी, तो ना बचने का रास्ता मिलेगा, और ना ही बुझाने की सुविधा।
अब सवाल ये है – क्या अगला हादसा होने तक ही जागेगा सिस्टम?