उत्तर प्रदेश के मथुरा-वृंदावन में स्थित विश्व प्रसिद्ध श्री बांके बिहारी मंदिर के लिए 500 करोड़ रुपये की लागत से प्रस्तावित कॉरिडोर परियोजना को सुप्रीम कोर्ट ने 15 मई 2025 को मंजूरी दे दी। इस निर्णय ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के नवंबर 2023 के आदेश को संशोधित किया, जिसमें मंदिर के फंड के उपयोग पर रोक लगाई गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को मंदिर के खजाने से धनराशि का उपयोग कर 5 एकड़ जमीन अधिग्रहण करने की अनुमति दी, बशर्ते अधिगृहीत जमीन श्री ठाकुर बांके बिहारी जी के नाम पर पंजीकृत हो। यह परियोजना श्रद्धालुओं की सुविधा और मंदिर परिसर में भीड़ प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण मानी जा रही है, खासकर 2022 की भगदड़ जैसी घटनाओं के बाद।
परियोजना का विवरण
प्रस्तावित कॉरिडोर 5 एकड़ में विकसित किया जाएगा, जिसका डिज़ाइन वाराणसी के काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की तर्ज पर तैयार किया गया है। इसमें मंदिर तक पहुंचने के लिए तीन प्रवेश द्वार होंगे, जिससे श्रद्धालुओं को दर्शन में आसानी होगी। कॉरिडोर में श्रद्धालुओं के लिए विशाल प्रतीक्षालय, सामान और जूता रखने की व्यवस्था, पेयजल, चिकित्सा सुविधा, शिशु देखभाल केंद्र, और परिक्रमा मार्ग जैसी सुविधाएं होंगी। परिक्रमा मार्ग का ऊपरी हिस्सा 11,600 वर्ग मीटर और निचला हिस्सा 11,300 वर्ग मीटर में बनाया जाएगा। इस परियोजना के लिए 276 से अधिक भवनों (149 आवासीय, 66 व्यावसायिक, और 57 मिश्रित उपयोग) का अधिग्रहण होगा। प्रभावित दुकानदारों और मकान मालिकों को उचित मुआवजा दिया जाएगा।
कुल अनुमानित लागत 500 करोड़ रुपये है, जिसमें से लगभग 450 करोड़ रुपये मंदिर के खजाने से लिए जाएंगे। उत्तर प्रदेश सरकार ने 2025 के बजट में इस परियोजना के लिए 150 करोड़ रुपये और पर्यटन विकास के लिए 125 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि मंदिर के सावधि जमा (फिक्स्ड डिपॉजिट) में उपलब्ध धनराशि का उपयोग जमीन अधिग्रहण के लिए किया जा सकता है। यह निर्णय इलाहाबाद हाई कोर्ट के 8 नवंबर 2023 के आदेश को संशोधित करता है, जिसमें मंदिर फंड के उपयोग पर रोक थी। कोर्ट ने शर्त रखी कि अधिगृहीत जमीन का पंजीकरण मंदिर ट्रस्ट या श्री बांके बिहारी जी के नाम पर होगा, ताकि मंदिर का धार्मिक और प्रबंधन अधिकार सुरक्षित रहे। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि मथुरा-वृंदावन के मंदिरों में अब अधिवक्ताओं को रिसीवर नियुक्त नहीं किया जाएगा। रिसीवर ऐसे व्यक्ति होंगे जो वैष्णव संप्रदाय से जुड़े हों, वेद-शास्त्रों का ज्ञान रखते हों, और मंदिर प्रबंधन से संबंधित हों। कोर्ट ने 2022 की भगदड़ जैसी घटनाओं का हवाला देते हुए कहा कि कॉरिडोर का निर्माण भीड़ प्रबंधन और श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए आवश्यक है।
पृष्ठभूमि और विवाद
नवंबर 2023 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मंदिर फंड के उपयोग पर रोक लगा दी थी, यह कहते हुए कि यह धन केवल मंदिर की देखरेख और धार्मिक कार्यों के लिए है। उत्तर प्रदेश सरकार ने तर्क दिया था कि यदि सरकारी फंड का उपयोग किया गया, तो जमीन और कॉरिडोर पर सरकार का मालिकाना हक होगा, जो मंदिर प्रबंधन के अधिकारों को प्रभावित करेगा। कॉरिडोर परियोजना का कुछ स्थानीय पुजारियों, गोस्वामियों, और ब्रजवासियों ने विरोध किया है। उनका कहना है कि इससे वृंदावन की पौराणिक कुंज गलियों का धार्मिक महत्व खत्म हो सकता है और स्थानीय व्यापार व जीवनशैली प्रभावित होगी।
गोस्वामी परिवार, जो मंदिर की देखरेख करता है, उन्होंने मंदिर के चढ़ावे के धन के उपयोग का विरोध किया था, यह कहते हुए कि यह भक्तों द्वारा भगवान को अर्पित धन है। सुप्रीम कोर्ट में यह मामला ईश्वर चंद्र शर्मा और अन्य याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर याचिका के बाद उठा, जिसमें कॉरिडोर निर्माण और रिसीवर नियुक्ति के मुद्दे शामिल थे।
श्रद्धालुओं के लिए लाभ
बांके बिहारी मंदिर में रोजाना 40-50 हजार और त्योहारों पर लाखों श्रद्धालु मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। कॉरिडोर के निर्माण से भीड़ को नियंत्रित करना आसान होगा, और एक साथ 10,000 श्रद्धालु दर्शन कर सकेंगे। तथा संकरी गलियों और स्थान की कमी के कारण होने वाली असुविधा, जैसे भगदड़ की घटनाएं, कम होंगी। कॉरिडोर से मथुरा-वृंदावन में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को लाभ होगा।
स्थानीय प्रतिक्रियाएं
मंदिर के पुजारी मोहन गोस्वामी ने कहा कि मंदिर के धन से जमीन खरीदना ठीक है, बशर्ते यह मंदिर के नाम हो। हालांकि, उन्होंने विकास कार्यों (जैसे सड़क, पार्क) के लिए मंदिर फंड के उपयोग का विरोध किया और वृंदावन की पौराणिकता को संरक्षित करने की मांग की। जिला प्रशासन ने आश्वासन दिया है कि प्रभावित दुकानदारों को बेहतर और व्यवस्थित दुकानें दी जाएंगी, और मंदिर के मूल स्वरूप को कोई नुकसान नहीं होगा।