आगरा में परिषदीय स्कूलों में किताबों का खेल। वितरण के बजाय छिपाने की साजिश

बच्चों को किताबें न मिलने का मामला

आगरा के परिषदीय विद्यालयों में शैक्षणिक सत्र शुरू हुए दो सप्ताह से अधिक समय बीत चुका है। इसके बावजूद कक्षा 1 से 8 तक के करीब 2.25 लाख बच्चों को पाठ्यपुस्तकें नहीं मिली हैं। जिले के 2451 स्कूलों में किताबों का वितरण न होने की शिकायतें सामने आ रही हैं। इसके उलट, किताबों को छिपाने का खेल चल रहा है। खेरागढ़ में पुस्तकों को छिपाने के लिए टेंपो में ले जाते हुए एक वीडियो वायरल हुआ, जिसने बेसिक शिक्षा अधिकारी और सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारियों की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस वीडियो ने प्रशासन की लापरवाही को उजागर किया है।

छापेमारी और जांच

अमर उजाला द्वारा इस मुद्दे को उठाए जाने के बाद खेरागढ़ में उपजिलाधिकारी ने छापा मारकर 2600 किताबें बरामद कीं। ये किताबें ब्लॉक और अन्य स्थानों पर बंडलों में रखी थीं, लेकिन बच्चों तक नहीं पहुंचीं। जिलाधिकारी अरविंद मल्लप्पा बंगारी ने 8 जुलाई को बीएसए को दो दिनों में किताबों के वितरण और उपलब्धता की रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया था। हालांकि, चार दिन बाद भी बीएसए ने कोई रिपोर्ट नहीं दी। सैंया में संसाधन केंद्र पर रखी किताबों को रविवार को एबीएसए दीपक कुमार कथित तौर पर छिपाने के लिए दूसरी जगह ले जा रहे थे। इस दौरान एक ग्रामीण ने इसका वीडियो बना लिया, जो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। इस घटना ने प्रशासनिक लापरवाही को और उजागर किया।

प्रशासन की कार्रवाई

जिलाधिकारी अरविंद मल्लप्पा बंगारी ने कहा कि बीएसए द्वारा किताबों की रिपोर्ट न भेजना गंभीर लापरवाही है। सैंया मामले में एबीएसए की भूमिका की जांच की जा रही है। यदि लापरवाही सिद्ध हुई, तो एबीएसए के खिलाफ रिपोर्ट महानिदेशक बेसिक शिक्षा को भेजी जाएगी। जिलाधिकारी ने स्पष्ट किया कि बच्चों को समय पर किताबें उपलब्ध कराना प्राथमिकता है, और इस कार्य में किसी भी तरह की ढिलाई बर्दाश्त नहीं की जाएगी। किताबों को छिपाने की घटनाओं ने न केवल शिक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाए हैं, बल्कि अधिकारियों की जवाबदेही पर भी ध्यान केंद्रित किया है।

बच्चों के भविष्य से खिलवाड़

यह स्थिति बच्चों के शिक्षा के अधिकार को प्रभावित कर रही है। सत्र शुरू होने के बावजूद किताबों की अनुपलब्धता से पढ़ाई बाधित हो रही है। अभिभावकों और स्थानीय लोगों में इस बात को लेकर रोष है कि किताबें स्कूलों में पहुंचने के बावजूद बच्चों तक क्यों नहीं पहुंच रही हैं। प्रशासन से मांग की जा रही है कि इस मामले में त्वरित कार्रवाई की जाए और दोषियों को दंडित किया जाए। साथ ही, भविष्य में ऐसी स्थिति से बचने के लिए किताबों के वितरण की पारदर्शी व्यवस्था सुनिश्चित की जाए।

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