आगरा में तेजी से बढ़ते एक्यूआई और घरों की सफाई ने अस्थमा, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिज़ीज़ (सीओपीडी) और टीबी के मरीजों की परेशानी बढ़ा दी है। पिछले कुछ दिनों में जितनी तेजी से एक्यूआई बढ़ा है, वो तीन-चार सिगरेट के बराबर है। इससे हॉस्पिटल्स में सांस के मरीजों की संख्या बढ़ गई है। एसएन मेडिकल कॉलेज में ओपीडी में मरीजों की संख्या 50 प्रतिशत तक बढ़ गई है। गंभीर मरीजों को भर्ती कर ऑक्सीजन देना पड़ रहा है। वार्ड फुल हो गए हैं। दीपावली से पहले शहर में फूटे प्रदूषण के बम ने शहरवासियों को बेहाल कर दिया है। गुरुवार को संजय प्लेस में शाम पांच बजे एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआइ) 295 रहा। एक सिगरेट पीने से करीब 64.8 एक्यूआई के बराबर धुआं उत्पन्न होता है। यानी नॉन स्मोकर्स ने बिना सिगरेट पिए ही पांच सिगरेट के बराबर धुआं सांसों के साथ अपने अंदर ले लिया। मेडिकल कॉलेज के चेस्ट एंड टीबी डिपार्टमेंट के एचओडी डॉ. जीवी सिंह ने बताया कि ओपीडी में रोज 250 मरीज आते हैं। जिनकी संख्या अब 320 के पार हो गई है। इनमें से 50 प्रतिशत मरीज अस्थमा और सीओपीडी के आ रहे हैं। गंभीर मरीजों की संख्या में इजाफा हुआ है। हर रोज 10-12 मरीजों को वॉर्ड में भर्ती करने की जरूरत पड़ रही है।
हवा में कार्बन डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनोआक्साइड समेत अन्य गैसों की प्रतिशतता अधिक होने से ये सांस के जरिए फेफड़ों तक पहुंच रहे हैं। संक्रमण हो रहा है। सांस उखड़ रही है। नाक की एलर्जी, सूखी खांसी, खराश, आंखों में जलन, करकराहट की परेशानी मिल रही है। लोगों को बार-बार छींक आ रही है। खासतौर से कामकाजी लोग और सड़क किनारे रहने वाले लोग और दुकानदारों की संख्या अधिक है।
डॉ. सिंह का कहना है सांस के रोगियों के लिए बदलता मौसम हानिकारक होता है। ऐसे में अगर प्रदूषण का स्तर भी ज्यादा हो तो गंभीरता बढ़ जाती है। पुराने मरीजों की समस्या भी ट्रिगर हो जाती है। साथ ही त्योहार के समय लोग दवाइयों को लेकर भी लापरवाह हो जाते हैं। यही वजह है कि समस्या बढ़ जाती है। त्योहार के समय तीन-चार दिन पहले से लेकर तीन चार दिन बाद तक दवाइयों का एक स्टेप ऊपर रखना चाहिए। जिससे परेशानी न बढ़े।