\नीदरलैंड और भारत के ऐतिहासिक रिश्ते
नीदरलैंड के सैन्य अधिकारियों का एक प्रतिनिधिमंडल हाल ही में आगरा पहुंचा ताकि मराठा साम्राज्य के सैन्य कमांडर कर्नल जॉन विलियम हेसिंग को श्रद्धांजलि दी जा सके। यह दौरा आगरा के भगवान टॉकीज चौराहे के पास स्थित उनके मकबरे, जिसे लाल ताजमहल के नाम से जाना जाता है, के लिए आयोजित किया गया। नीदरलैंड की राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के अधिकारियों ने मकबरे पर सिर झुकाकर अपनी श्रद्धा व्यक्त की। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग और सिंधिया अनुसंधान केंद्र के सहयोग से आयोजित इस दौरे ने 250 साल पुराने नीदरलैंड और मराठा शासन के बीच सैन्य और कूटनीतिक संबंधों को उजागर किया।
कर्नल जॉन हेसिंग की सैन्य विरासत
1739 में नीदरलैंड के यूट्रेक्ट में जन्मे जॉन हेसिंग एक कुशल सैन्य अधिकारी थे। उन्होंने डच ईस्ट इंडिया कंपनी में अपनी सेवाएं दीं और 1763 में भारत आए। यहां उन्होंने पहले हैदराबाद के निजाम की सेना में काम किया, फिर मराठा शासक महादजी सिंधिया की सेना में शामिल हुए। उनकी रणनीतिक क्षमता के कारण 1799 में दौलतराव सिंधिया ने उन्हें आगरा किले का कमांडर नियुक्त किया। 1803 में मराठा-अंग्रेज युद्ध के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी एन हेसिंग ने एक लाख रुपये की लागत से लाल पत्थर से मकबरे का निर्माण करवाया, जिसे आज लाल ताजमहल के नाम से जाना जाता है।
लाल ताजमहल का सांस्कृतिक महत्व
लाल ताजमहल केवल एक स्मारक नहीं, बल्कि डच और भारतीय संस्कृतियों के संगम का प्रतीक है। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की सहायक पुरातत्वविद आकांक्षा राय चौधरी ने डच प्रतिनिधिमंडल को मकबरे की वास्तुकला और इतिहास की जानकारी दी। सिंधिया अनुसंधान केंद्र के प्रमुख अरुणांश बी गोस्वामी ने बताया कि 18वीं शताब्दी में डच सैनिकों ने मराठा शक्ति को मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। मकबरे की दीवारों पर फारसी शिलालेख हैं, जिनमें एन हेसिंग ने अपने पति के निधन पर गहरे दुख को व्यक्त किया है। डच अधिकारियों ने मकबरे को छूकर अपने पूर्वज की उपस्थिति का अनुभव किया। यह स्मारक डच-भारत संबंधों की एक अनूठी कहानी बताता है और एक पत्नी द्वारा अपने पति की स्मृति में बनवाया गया पहला स्मारक होने का गौरव रखता है।