एक महिला के नाम पर 25 प्रसव और 5 नसबंदी का चौंकाने वाला खुलासा

  • फतेहाबाद सीएचसी में जननी सुरक्षा योजना घोटाला

आगरा। उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के फतेहाबाद सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में स्वास्थ्य विभाग की एक ऑडिट रिपोर्ट ने सनसनीखेज घोटाले का पर्दाफाश किया है। रिपोर्ट के अनुसार, ढाई साल के भीतर एक ही महिला के नाम पर 25 बार प्रसव और 5 बार नसबंदी दर्ज की गई। इस फर्जीवाड़े के जरिए जननी सुरक्षा योजना और महिला नसबंदी प्रोत्साहन योजना के तहत लगभग 45,000 रुपये की सरकारी राशि हड़प ली गई। यह मामला सामने आने के बाद स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं। मुख्य चिकित्साधिकारी (सीएमओ) डॉ. अरुण कुमार श्रीवास्तव ने इसकी जांच के लिए सहायक मुख्य चिकित्साधिकारी (एसीएमओ) डॉ. जितेंद्र लवानियां को नोडल अधिकारी और जगपाल सिंह चाहर को जांच अधिकारी नियुक्त किया है।

घोटाले का खुलासा कैसे हुआ?

यह घोटाला तब उजागर हुआ जब स्वास्थ्य विभाग ने फतेहाबाद सीएचसी का नियमित ऑडिट कराया। ऑडिट के दौरान रिकॉर्ड में एक महिला के नाम पर असामान्य रूप से बार-बार प्रसव और नसबंदी के दावे सामने आए। जांच में पता चला कि एक ही महिला के नाम पर ढाई साल में 25 बार प्रसव और 5 बार नसबंदी दिखाई गई, जो जैविक रूप से असंभव है। इन फर्जी रिकॉर्ड्स के आधार पर सरकारी योजनाओं का पैसा निकाला गया और संबंधित व्यक्तियों के खातों में ट्रांसफर किया गया। इस मामले में चार लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है, जिसमें से तीन को गिरफ्तार कर लिया गया है।
सीएमओ डॉ. अरुण श्रीवास्तव ने बताया कि बुधवार को एसीएमओ डॉ. जितेंद्र लवानियां पुलिस बल के साथ फतेहाबाद थाने से गांव नगला कदम पहुंचे। वहां से अशोक कुमार (पुत्र हरीशचंद्र) को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया गया। अशोक ने पूछताछ में खुलासा किया कि ब्लॉक लेखा प्रबंधक नीरज अवस्थी, ब्लॉक कार्यक्रम प्रबंधक गौरव थापा और डाटा एंट्री ऑपरेटर गौतम सिंह के साथ मिलकर यह घोटाला किया गया। उसने बताया कि प्रसव और नसबंदी की राशि को फर्जी खातों में डालकर आपस में बांट लिया जाता था। इसके बाद तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर फतेहाबाद थाने में पुलिस के हवाले कर दिया गया। एसीएमओ ने चारों के खिलाफ अभियोग दर्ज करने के लिए तहरीर दी है।
क्या है जननी सुरक्षा योजना?
जननी सुरक्षा योजना (जेएसवाई) भारत सरकार की एक प्रमुख स्वास्थ्य योजना है, जिसका उद्देश्य गर्भवती महिलाओं को सुरक्षित प्रसव और आर्थिक सहायता प्रदान करना है। इस योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में प्रसव के लिए 1,400 रुपये और शहरी क्षेत्रों में 1,000 रुपये की सहायता दी जाती है। वहीं, नसबंदी प्रोत्साहन योजना के तहत महिलाओं को ऑपरेशन के बाद 1,100 रुपये तक की राशि दी जाती है। इन योजनाओं का मकसद मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर को कम करना है। लेकिन फतेहाबाद सीएचसी में हुए इस घोटाले ने इन योजनाओं के दुरुपयोग की भयावह तस्वीर पेश की है।

जांच में अब तक क्या सामने आया?

फर्जी रिकॉर्ड्स का खेल:

एक महिला के नाम पर 25 प्रसव और 5 नसबंदी जैसी असंभव प्रविष्टियां रिकॉर्ड में दर्ज की गईं। यह जैविक रूप से संभव नहीं है, क्योंकि एक महिला का गर्भकाल 9 महीने का होता है और ढाई साल में अधिकतम 3 प्रसव ही संभव हैं।

आर्थिक नुकसान:

ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार, इस फर्जीवाड़े से लगभग 45,000 रुपये की सरकारी राशि का गबन किया गया। हालांकि, जांच आगे बढ़ने पर यह राशि और बढ़ सकती है।
आरोपियों की भूमिका: अशोक कुमार ने स्वीकार किया कि नीरज अवस्थी, गौरव थापा और गौतम सिंह इस घोटाले के मुख्य सूत्रधार थे। इन लोगों ने मिलकर फर्जी दस्तावेज तैयार किए और राशि को अपने खातों में ट्रांसफर किया।
कर्मचारियों का दबदबा: सीएमओ ने बताया कि फतेहाबाद और शमशाबाद सीएचसी में कुछ कर्मचारी लंबे समय से हावी रहे हैं, जिससे इस तरह की अनियमितताएं संभव हो सकीं।

सीएमओ डॉ. अरुण श्रीवास्तव ने कहा, “यह पता लगाया जाएगा कि यह तकनीकी गलती है या कर्मचारियों की मिलीभगत से किया गया घोटाला। दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।” पुलिस ने नीरज अवस्थी, गौरव थापा और गौतम सिंह को गिरफ्तार कर लिया है, जबकि चौथे आरोपी अशोक कुमार से पूछताछ जारी है। जांच टीम अब अन्य संदिग्ध रिकॉर्ड्स की भी पड़ताल कर रही है ताकि यह पता लगाया जा सके कि यह घोटाला कितने समय से चल रहा था और इसमें कितने लोग शामिल थे।
सामाजिक परिदृश्य पर असर यह घोटाला न केवल स्वास्थ्य विभाग की विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है, बल्कि सामाजिक स्तर पर भी गहरे प्रभाव डाल सकता है।

सरकारी योजनाओं पर अविश्वास:

जननी सुरक्षा योजना जैसी पहलें गरीब और ग्रामीण महिलाओं के लिए जीवन रेखा हैं। इस तरह के घोटाले से लोग सरकारी योजनाओं पर भरोसा खो सकते हैं, जिससे इनका लाभ लेने में हिचकिचाहट बढ़ सकती है।

स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता पर सवाल:

यह मामला स्वास्थ्य सेवाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी को उजागर करता है। इससे लोगों का भरोसा सरकारी अस्पतालों से उठ सकता है।
आर्थिक असमानता का बढ़ना: यह राशि उन जरूरतमंद महिलाओं तक पहुंचनी चाहिए थी, जो प्रसव और नसबंदी के बाद सहायता की हकदार हैं। इस गबन से गरीब तबके को और नुकसान हुआ है।

आम जनता में आक्रोश:

इस खबर के सामने आने के बाद स्थानीय लोगों में गुस्सा देखा जा रहा है। सोशल मीडिया पर भी लोग स्वास्थ्य विभाग और सरकार की आलोचना कर रहे हैं।
जरूरतमंदों का नुकसान: जिन महिलाओं को इस योजना का लाभ मिलना चाहिए था, वे इससे वंचित रह गईं। इससे मातृ और शिशु स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।

प्रशासनिक सुधार की मांग:

यह घटना प्रशासनिक सुधारों की जरूरत को रेखांकित करती है। लोग अब सख्त निगरानी और पारदर्शी सिस्टम की मांग कर सकते हैं।

निष्कर्ष

फतेहाबाद सीएचसी में हुआ यह घोटाला स्वास्थ्य सेवाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार का एक नमूना है। यह सिर्फ आर्थिक गबन की कहानी नहीं, बल्कि गरीब और जरूरतमंद लोगों के हक पर डांका भी है। जांच के नतीजे और दोषियों पर कार्रवाई इस मामले की गंभीरता को तय करेंगे। लेकिन यह स्पष्ट है कि अगर ऐसी घटनाओं पर रोक नहीं लगाई गई, तो सरकारी योजनाओं का मकसद अधूरा रह जाएगा और जनता का विश्वास पूरी तरह टूट सकता है।

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