सिर्फ दहाड़ से कांप जाते हैं दुश्मन, जिन्हें देखकर भाग गए 15 भारतीयों को अगवा करने वाले समुद्री डाकू; कौन हैं Marcos कमांडो?

मार्कोस कमांडो को समंदर का सिकंदर माना जाता है। यह पानी में भी मौत को मात देने में माहिर है और इनके नाम से भी दुश्मनों की रूह कांप जाती है। मार्कोस कमांडो इंडियन नेवी की खास यूनिट है जिन्हें पानी में दुश्मनों से लड़ने में महारथ हासिल है। फिलहाल इस स्पेशल यूनिट में 1200 कमांडो शामिल है जो देश की रक्षा में अपनी जान लगाने को तैयार रहते हैं।


TNF TODAY आगरा । भारतीय नौसेना के विशिष्ट समुद्री कमांडो ‘मार्कोस’ ने उत्तरी अरब सागर में लाइबेरिया के ध्वज वाले वाणिज्यिक जहाज के अपहरण के प्रयास पर कार्रवाई की है। शुक्रवार को मार्कोस ने 15 भारतीयों सहित चालक दल के सभी 21 सदस्यों को रेस्क्यू कर लिया है।
दरअसल, पांच-छह हथियारबंद लोगों ने एमवी लीला नॉरफोक जहाज को अपहरण करने की कोशिश की थी। इसके बाद नौसेना ने मदद के लिए एक युद्धपोत, समुद्री गश्ती विमान, हेलीकॉप्टर और पी-8आई और लंबी दूरी के विमान और प्रीडेटर एमक्यू9बी ड्रोन तैनात किए।

नौसेना के प्रवक्ता कमांडर विवेक मधवाल ने कहा, “जहाज पर सवार 15 भारतीयों सहित चालक दल के सभी 21 सदस्यों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया है।” उन्होंने कहा, “मार्कोस कमांडो ने जहाज की जांच की और पुष्टि की कि वहां कोई अपहर्ता नहीं थे। भारतीय नौसेना के युद्धपोत और गश्ती विमान की चेतावनी के बाद समुद्री डाकू जहाज छोड़कर भाग गए।”


मधवाल ने कहा, “मिशन में तैनात युद्धपोत पर मौजूद भारतीय नौसेना के मार्कोस कमांडो वाणिज्यिक जहाज पर पहुंचे और बचाव अभियान को अंजाम दिया।”

कौन होते हैं मार्कोस?


सेना के मरीन कमांडो यूनिट मार्कोस कहलाती है। इस यूनिट का आधिकारिक नाम मरीन कमांडो फोर्स (MCF) है। मार्कोस कमांडर को पानी में मौत को मात देने में महारत हासिल है। इन लोगों को समंदर का सिकंदर भी कहा जाता है। इन कमांडो को पानी में अपने ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए तैयार किया जाता है। मार्कोस कमांडो को होस्‍टेस रेस्‍क्‍यू, अनकंवेंशनल वॉरफेयर, पर्सनल रिकवरी जैसी कई मुहिम में शामिल किया जा चुका है।

कब हुई मार्कोस कमांडो यूनिट की स्थापना?


मार्कोस कमांडो की यानी मरीन कमांडो फोर्स का गठन फरवरी, 1987 में किया गया था। दरअसल, उस वक्त आतंकवादी हमले और समुद्री लुटेरों का आतंक काफी तेजी से बढ़ने लगा था। इसके बाद स्पेशल फोर्स की जरूरत महसूस होने लगी और इसी सोच के साथ 1986 में इस यूनिट ने आकार लेना शुरू किया। हालांकि, 1991 में इसका नाम ‘मरीन कमांडो फोर्स’ (MCF) कर दिया गया। यह कमांडो जमीन, जल और वायु सभी जगह दुश्मन के लिए घातक साबित होते हैं।


इस यूनिट ने धीरे-धीरे अनुभव और व्यावसायिकता के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा हासिल कर ली है। मार्कोस नियमित रूप से झेलम नदी और वूलर झील में ऑपरेट करते हैं। इसके जरिए मार्कोस जम्मू और कश्मीर में विशेष समुद्री और आतंकवाद विरोधी अभियान चलाते हैं। मार्कोस हर तरह के मिशन के लिए तैयार रहते हैं और इन्हें अपने मिशन के लिए खास तरह की ट्रेनिंग दी जाती है।

क्यों कठिन मानी जाती है मार्कोस कमांडो की ट्रेनिंग?


फिलहाल, इसमें 1200 कमांडो मौजूद हैं। मार्कोस कमांडो जितने सख्त होते हैं, इन्हें उतने ही कठिन ट्रेनिंग से गुजरना पड़ता है। इनकी ट्रेनिंग का जितनी कठिन होती है, इसके बारे में एक आम व्यक्ति अंदाजा भी नहीं लगा सकता है। दरअसल, मार्कोस के लिए चुने गए सैनिकों की ट्रेनिंग तीन सालों के लिए होती है, इसमें हजारों सैनिकों में से कुछ ही सैनिकों को ट्रेनिंग के लिए आगे भेजा जाता है।

सैनिकों की तीन साल की कठिन ट्रेनिंग के दौरान उन्हें 24 घंटे में से मात्र 4-5 घंटे ही सोने का समय मिलता है। तड़के सुबह से ही उनकी ट्रेनिंग शुरू हो जाती है, जो दर शाम या कई बार रात तक चलती रहती है। हर परिस्थिति में सैनिकों को अपनी ट्रेनिंग पूरी करनी होती है।


मार्कोस को सिर्फ पानी में ही नहीं, बल्कि हर तरह के वातावरण में प्रशिक्षित किया जाता है। भारत में राजस्थान, तवांग, सोनमर्ग और मिजोरम जैसे अलग-अलग क्षेत्रों में भी इन्हें ट्रेनिंग दी जाती है, ताकि यह किसी भी तरह के ऑपरेशन को अंजाम दे सके। इन्हें केवल इंडियन नेवी ही नहीं, बल्कि ब्रिटिश और अमेरिकी नेवी के ट्रेनरों से भी ट्रेनिंग दिलवाई जाती है। इस टीम में ज्यादातर 20-22 साल के युवाओं को लिया जाता है।

बीच ट्रेनिंग में टूट जाती है हिम्मत


कई मीटर की ऊंचाई से कूदना, गहरे पानी में लंबे समय तक टिके रहना, कीचड़ में कई मीटर तक दौड़ लगाना, यह सब इनके ट्रेनिंग का हिस्सा होते हैं। आम शब्दों, में कहें, तो यह ट्रेनिंग इतनी टफ होती है कि कुछ युवा तो आधे में ही इसे छोड़कर चले जाते हैं। इन सभी पड़ावों को पार करने वाले सैनिकों को आगे की ट्रेनिंग के लिए अमेरिका में नेवी सील के साथ ट्रेनिंग दी जाती है। इन सबके बाद मार्कोस कमांडो तैयार होते हैं।

कितने ऑपरेशन में तैनात हुए मार्कोस कमांडो?


1987 से अब तक मार्कोस को कई बड़े ऑपरेशन को पूरा करने के लिए तैनात किया गया और उन्होंने इन ऑपरेशन में बेहद अहम भूमिका निभाई है। । पहली बार मार्कोस की तैनाती 1990 के दशक में वुलर झील में की गई थी।


साल 1987 में हुए पवन ऑपरेशन को मार्कोस कमांडो ने ही सफलता दिलाई थी। इसके बाद, साल 1988 में कैक्टस ऑपरेशन, 1991 में ताशा ऑपरेशन, साल 1992 में जबरदस्त ऑपरेशन, 1999 में कारगिल वार, 2008 में ब्लैक टॉरनेडो नाडो ऑपरेशन और 2015 में हुए राहत ऑपरेशन समेत स्पेशल कमांडो फोर्स ने कई बड़े ऑपरेशन को सफलतापूर्वक पूरा किया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *