India-यूएई: भारत ने पहली बार कच्चा तेल खरीदने के लिए यूएई को रुपये में किया भुगतान, इस कारण उठाया गया ये कदम

India-यूएई: भारत ने July में रुपये में निपटान के लिए संयुक्त अरब अमीरात के साथ एक समझौते को औपचारिक रूप दिया दिया था। इसके बाद इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (IOC) ने अबू धाबी नेशनल ऑयल कंपनी (एडनॉक) से भारतीय रुपये में 10 लाख बैरल कच्चा तेल खरीदने के लिए भुगतान किया।

दुनिया के तीसरे सबसे बड़े ऊर्जा उपभोक्ता भारत ने संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) से खरीदे गए कच्चे तेल के लिए पहली बार रुपये में भुगतान किया है। वैश्विक स्तर पर स्थानीय मुद्रा को बढ़ावा देने के लिए यह भारत की ओर से उठाया गया एक ऐतिहासिक कदम है। यह कदम तेल आपूर्तिकर्ताओं में विविधता लाने, लेनदेन लागत में कटौती करने और रुपये को एक व्यवहार्य व्यापार निपटान मुद्रा के रूप में स्थापित करने के भारत के व्यापक प्रयासों का हिस्सा है।

यह पहल 11 जुलाई, 2022 को भारतीय रिजर्व बैंक उस फैसले के तहत उठाया गया है, जिसमें आयातकों को रुपये में भुगतान करने और निर्यातकों को स्थानीय मुद्रा में भुगतान प्राप्त करने की अनुमति दी गई है।

अधिकारियों ने इस बात पर जोर दिया कि अंतर्राष्ट्रीयकरण एक सतत प्रक्रिया है और वर्तमान में इसका कोई विशिष्ट लक्ष्य नहीं है।
रुपये के सौदे पर जुलाई में समझौता हुआ था
जुलाई में, भारत ने संयुक्त अरब अमीरात के साथ रुपया निपटान समझौते को औपचारिक रूप दिया। इसके बाद इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (आईओसी) ने अबू धाबी नेशनल ऑयल कंपनी (एडनॉक) से भारतीय रुपये में 10 लाख बैरल कच्चा तेल खरीदने के लिए भुगतान किया। इसके अतिरिक्त, कुछ रूसी तेल आयात भी रुपये में किए गए हैं।

भारत अपनी तेल जरूरतों का 85 प्रतिशत से अधिक आयात करता है। ऐसे में देश ने एक बहुआयामी रणनीति अपनाई है, जिसमें सबसे अधिक लागत प्रभावी आपूर्तिकर्ताओं से सोर्सिंग, आपूर्ति स्रोतों में विविधता लाने और अंतरराष्ट्रीय दायित्वों का पालन करने पर जोर दिया गया है। रूसी तेल आयात के रैंप-अप के दौरान राष्ट्र का दृष्टिकोण लाभप्रद साबित हुआ, जिससे अरबों डॉलर की बचत हुई।

क्या है भारत की ओर से रुपये में भुगतान का कारण?
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने पिछले तीन वर्षों में सीमा पार भुगतान में रुपये के उपयोग को बढ़ावा देने के अपने प्रयास में एक दर्जन से अधिक अंतरराष्ट्रीय बैंकों को रुपये में व्यापार करने की अनुमति दी है। आरबीआई अब तक 22 देशों के साथ रुपये में व्यापार की सहमति बना चुका है। दरअसल, ऐसा करने से ना केवल भारतीय मुद्रा का प्रचलन वैश्विक हो सकेगा बल्कि रुपये का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने से डॉलर की मांग को कम करने में मदद मिल सकेगी। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्विक मुद्रा की गिरावट से कम प्रभावित हो सकेगी। 1970 के दशक से ही तेल की खरीद का भुगतान डॉलर में करने की परंपरा चली आ रही है।

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