आगरा। 2012 में आगरा में अपने भाई, भाभी और उनके चार बच्चों की जघन्य हत्या के मामले में ही गंभीर सिंह को माैत की सजा सुनाई गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने उसकी अपील पर सुनवाई करते हुए उसे रिहा करने के आदेश दिए गए।
भाई, भाभी और उनके चार बच्चों की हत्या करने पर माैत की सजा पा चुका गंभीर सिंह बुधवार को जेल से बाहर आ गया था। और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उसे जेल से रिहा कर दिया गया। आगरा के अछनेरा थाना क्षेत्र के गांव तुरकिया में दो सगे भाई गंभीर और सत्यभान ने जमीन के लिए 2007 में अपनी मां की हत्या कर दी थी। तब ही गंभीर ने कसम खाई थी कि जिस जमीन के लिए उसने मां की हत्या की थी, अगर भाई ने गड़बड़ी की तो उसे भी नही छोड़ेगा। और जमीन के लिए वह कुछ भी कर सकता है।
पुलिस ने दोनों भाइयों को गिरफ्तार कर उन्हें जेल भेजा था। लेकिन सत्यभान को पहले जमानत पर रिहा कर दिया गया। और मुख्य आरोपी गंभीर को जमानत तक नहीं मिल सकी थी। इस पर सत्यभान से उसने जमानत में मदद करने के रुपयों के लिए एक बीघा खेत बेचने की बात कही गई थी। और इस पर गंभीर तैयार हो गया। छह महीने बाद के जब गंभीर जेल से रिहा होकर आया तो उसने सत्यभान से अपना हिस्सा देने के लिए कहा। और इस ही बात पर दोनों में झगड़ा भी हुआ। बाद में सत्यभान ने उसे हिस्सा देने से मना कर दिया था। इसके बाद ही मई 2012 में गंभीर अपने दोस्त अभिषेक के साथ दिल्ली से घर आया था। 9 मई 2012 को भाई सत्यभान, भाभी पुष्पा, भतीजा और तीन भतीजियों की हत्या कर दी थी। इसके बाद ही बहन गायत्री को लेकर फरार हो गया था।
मृत्युदंड पाए व्यक्ति को सुप्रीम कोर्ट ने किया बरी; सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में आगरा जिले में अपने भाई, भाभी और उनके चार बच्चों की जघन्य हत्या के मामले में ही मौत की सजा पाए व्यक्ति को बरी तक कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा है कि अभियोजन पक्ष के मामले में बहुत सी खामियां भी हैं, जिन्हें सुधारना भी असंभव है। जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने गंभीर सिंह की अपील को स्वीकार करते हुए कहा है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट अभियोजन पक्ष के मामले में अंतर्निहित असंभवताओं और कमजोरियों पर ध्यान देने में विफल रहा है। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, हमें लगता है कि यह मामला जांच एजेंसी और अभियोजन पक्ष की ओर से पूरी तरह से उदासीन दृष्टिकोण वाला ही है। छह निर्दोष व्यक्तियों की जघन्य हत्याओं से जुड़े मामले की जांच बेहद लापरवाही से की गई है। हाईकोर्ट ने 2019 में ट्रायल कोर्ट के 2017 के उस आदेश को बरकरार तक रखा था कि जिसमें अपीलकर्ता को मामले में दोषी तक ठहराया गया था और उसे मृत्युदंड की भी सजा सुनाई गई थी। लेकिन शीर्ष अदालत ने उसे जेल से रिहा कर दिया था।