मैनपुरी के किशनी थाना क्षेत्र में राम जानकी मंदिर की 18 बीघा जमीन, जिसकी कीमत लगभग 50 करोड़ रुपये है, विवाद का केंद्र बन गई है। मंदिर के महंत बाबा सुरेंद्र दास की अचानक मौत के बाद उनके अंतिम संस्कार और जमीन के मालिकाना हक को लेकर दो गुटों में हिंसक झड़प हुई। प्रशासन ने मंदिर को सील कर दिया और 13 लोगों पर शांति भंग करने की कार्रवाई की। आइए, इस मामले की पूरी कहानी और इतिहास को समझते हैं।
मंदिर विवाद की शुरुआत
राम जानकी मंदिर, जटपुरा चौराहे पर स्थित है, जहां आसपास का क्षेत्र विकसित हो चुका है। मंदिर की 18 बीघा जमीन की कीमत 5 से 8 हजार रुपये प्रति वर्ग फीट है, जिसके कारण भू-माफियाओं की नजर इस पर पड़ी। करीब 5 साल पहले शुरू हुआ यह विवाद तब और गहरा गया, जब क्षेत्र का विकास होने से जमीन की कीमत 50 करोड़ रुपये तक पहुंच गई।
बाबा सुरेंद्र दास की कहानी
- बचपन और मंदिर की सेवा: बाबा सुरेंद्र दास, कुसमरा क्षेत्र के नगला अहिर गांव के निवासी, 5-6 साल की उम्र में घर छोड़कर अपने गुरु सरयू दास के पास आ गए थे। उन्होंने राम जानकी मंदिर की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया।
- महंत बनने की यात्रा: 1960 में बने इस मंदिर की कमान 1980 में सरयू दास को सौंपी गई थी। 2010 में उनकी मृत्यु के बाद बाबा सुरेंद्र दास मंदिर के महंत बने।
- जमीन का मालिकाना हक: मंदिर की 18 बीघा जमीन महंत के नाम थी, जिस पर खेती-किसानी होती थी। इससे मंदिर के आयोजन का खर्च चलता था। बाबा सुरेंद्र ने 4 बीघा जमीन अपने नाम रखी थी, ताकि मंदिर की जमीन पर कब्जे की स्थिति में कुछ हिस्सा सुरक्षित रहे।
विवाद का कारण और भू-माफियाओं की साजिश
- रघुनंदन दास की भूमिका: समर्थकों का आरोप है कि औरैया से आए रघुनंदन दास, जिसे भू-माफिया ने मंदिर का महंत बनाया, एक हिस्ट्रीशीटर है। उसने मंदिर की जमीन पर कब्जे की कोशिश की। 5 साल पहले उसे मंदिर में महामंडलेश्वर बनाने का प्रयास हुआ, जिसका बाबा सुरेंद्र ने विरोध किया।
- बाबा सुरेंद्र का संघर्ष: बाबा सुरेंद्र को मंदिर से बाहर निकाल दिया गया और उन्हें अपमानित किया गया। उन्होंने थाने से लेकर मुख्यमंत्री तक शिकायत की, लेकिन कोई राहत नहीं मिली।
- मौत का रहस्य: 5 जून 2025 को रघुनंदन को महामंडलेश्वर बनाने के लिए मंदिर में आयोजन की खबर सुनकर बाबा सुरेंद्र की तबीयत बिगड़ गई। भागवत कथा में शामिल होने के दौरान उन्हें हार्ट अटैक आया और उनकी मृत्यु हो गई। समर्थकों का दावा है कि यह अपमान और जमीन पर कब्जे की चिंता का परिणाम था।
अंतिम संस्कार में हिंसा और तनाव
- धरना और मारपीट: बाबा सुरेंद्र की मृत्यु के बाद उनके समर्थकों ने अंतिम संस्कार मंदिर परिसर में करने की मांग की, लेकिन रघुनंदन के गुट ने इसका विरोध किया। दोनों पक्षों में लाठी-डंडों से मारपीट हुई, जिसके बाद पुलिस ने लाठीचार्ज किया।
- प्रशासन का हस्तक्षेप: प्रशासन ने मंदिर को सील कर दिया और रघुनंदन को मंदिर से बाहर निकाल दिया। जमीन के कागजात दिखाने के बाद बाबा सुरेंद्र का अंतिम संस्कार मंदिर के पास की जमीन पर हुआ।
- पुलिस कार्रवाई: विवाद के दौरान पत्थरबाजी और हंगामे के आरोप में 13 लोगों के खिलाफ शांति भंग की कार्रवाई की गई। क्षेत्र में तनाव को देखते हुए पुलिस बल तैनात है।
मंदिर का इतिहास
- निर्माण और शुरुआत: 1960 में बने इस मंदिर में शुरू में बाबा हरभजन दास रहते थे। उनके लिए स्थानीय लोगों ने चंदा इकट्ठा कर एक कमरा बनवाया था।
- महंतों की श्रृंखला: 1980 में हरभजन दास की मृत्यु के बाद सरयू दास महंत बने, और 2010 में उनकी मृत्यु के बाद बाबा सुरेंद्र ने यह जिम्मेदारी संभाली।
- विकास और कीमत में उछाल: पहले इस क्षेत्र में कोई विकास नहीं था, लेकिन धीरे-धीरे चौराहे के पास 400 दुकानें बन गईं। मंदिर की सड़क अभी भी अविकसित है, लेकिन जमीन की कीमत करोड़ों में पहुंच गई।
आरोप और सवाल
- बाबा सुरेंद्र के समर्थक राम किशन दास का कहना है कि उनकी मृत्यु अपमान और जमीन पर कब्जे की चिंता के कारण हुई। उन्होंने दोषियों पर सख्त कार्रवाई की मांग की है।
- स्थानीय लोगों का कहना है कि इस विवाद में बड़े-बड़े लोग शामिल हैं, जिनके कारण कोई खुलकर बोलने को तैयार नहीं है।
- प्रशासन अब मंदिर की जमीन को अपने कब्जे में ले चुका है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि भविष्य में इसका प्रबंधन कैसे होगा।