मथुरा के वृंदावन में हाल ही में भारतीय सेना के मेजर सौरभ पाटनी ने संत प्रेमानंद महाराज से भेंट की और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। 2019 के पुलवामा आतंकी हमले में आतंकवादियों से लोहा लेते हुए गंभीर रूप से घायल हुए मेजर पाटनी ने इस मुलाकात में अपनी मानसिक और शारीरिक चुनौतियों को साझा किया। उन्होंने बताया कि हमले में उनके दोनों पैरों में गोली लगी थी, जिसके बाद कठिन परिश्रम और दृढ़ इच्छाशक्ति से वे फिर से चलने-फिरने में सक्षम हुए। हालांकि, जीवन की चुनौतियां उनके लिए अभी भी कम नहीं हुई हैं। संत प्रेमानंद महाराज ने उनकी बात ध्यान से सुनी और उन्हें आध्यात्मिक मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।
महाराज ने मेजर पाटनी को समझाया कि जीवन में केवल बाहरी संघर्ष ही नहीं, बल्कि मन के भीतर छिपे दोषों से भी जूझना जरूरी है। उन्होंने कहा कि पूर्व जन्मों के कर्मों का प्रभाव जीवन पर पड़ता है और जब तक इनका नाश नहीं होता, पूर्ण संतुष्टि प्राप्त करना कठिन है। महाराज ने शरीर की नश्वरता पर जोर देते हुए बताया कि शारीरिक उपलब्धियां इस संसार में रह जाती हैं, लेकिन पुण्य कर्म आत्मा के साथ जाते हैं। उन्होंने मेजर पाटनी को सलाह दी कि जिस समर्पण से उन्होंने देश की सेवा की, उसी भाव से अब भगवत भक्ति की ओर बढ़ना चाहिए।
भक्ति का मार्ग और जीवन का सत्य
प्रेमानंद महाराज ने मेजर पाटनी को बताया कि यह शरीर क्षणभंगुर है और किसी को नहीं पता कि जीवन का अगला पल क्या लाएगा। ऐसे में भगवान का नाम स्मरण करना और भक्ति में लीन होना ही जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य है। उन्होंने कहा कि आध्यात्मिकता के बिना मानव जीवन अधूरा रहता है। भक्ति का मार्ग न केवल मन को शांति देता है, बल्कि जीवन को सार्थक भी बनाता है। महाराज के इन शब्दों ने मेजर पाटनी को गहराई से प्रभावित किया। उन्होंने संत की शिक्षाओं को हृदय से स्वीकार करते हुए भक्ति के पथ पर चलने का संकल्प लिया।
इस मुलाकात ने मेजर पाटनी के जीवन में एक नया दृष्टिकोण प्रदान किया। उनकी देशभक्ति और अब भक्ति की ओर बढ़ती यात्रा न केवल उनके लिए, बल्कि समाज के लिए भी प्रेरणादायक है। यह घटना वृंदावन की आध्यात्मिक भूमि पर संत और सैनिक के बीच हुए इस संवाद को विशेष बनाती है। मेजर पाटनी ने महाराज का आभार व्यक्त किया और उनके मार्गदर्शन को अपने जीवन का आधार बनाने का वचन दिया।