बांग्लादेशी घुसपैठ पर ओवैसी का बड़ा बयान

1971 की जंग के बाद से चली आ रही समस्या

हैदराबाद के सांसद और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने बांग्लादेशी घुसपैठ के मुद्दे पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने 1971 की भारत-पाकिस्तान जंग के बाद बांग्लादेशी नागरिकों को भारत में शरण देने के फैसले पर सवाल उठाए। ओवैसी ने कहा कि तत्कालीन सरकार के इस कदम ने देश में घुसपैठ की समस्या को जन्म दिया, जिसका असर आज भी देखने को मिल रहा है।

1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद बांग्लादेश स्वतंत्र राष्ट्र बना। इस दौरान लाखों बांग्लादेशी शरणार्थी भारत में आए। ओवैसी के मुताबिक, उस समय भारत सरकार ने मानवीय आधार पर इन शरणार्थियों को शरण दी थी। हालांकि, उन्होंने दावा किया कि कई लोग भारत में ही रह गए और धीरे-धीरे अवैध रूप से देश के विभिन्न हिस्सों में बस गए। खासकर पश्चिम बंगाल और असम जैसे राज्यों में उनकी मौजूदगी ने स्थानीय जनसंख्या और संसाधनों पर दबाव बढ़ाया।

ओवैसी ने कहा कि बांग्लादेशी घुसपैठ आज भी एक गंभीर चुनौती है। उन्होंने केंद्र और राज्य सरकारों से इस मुद्दे पर कठोर कदम उठाने की मांग की। उनके अनुसार, अवैध घुसपैठियों की पहचान और उनके खिलाफ कार्रवाई जरूरी है ताकि स्थानीय लोगों के अधिकारों की रक्षा हो सके। साथ ही, उन्होंने यह भी जोड़ा कि इस समस्या का समाधान मानवीय दृष्टिकोण के साथ किया जाना चाहिए, ताकि कोई भी निर्दोष प्रभावित न हो।

ओवैसी ने सरकार से सवाल किया कि घुसपैठ रोकने के लिए अब तक क्या ठोस कदम उठाए गए हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि सीमा सुरक्षा को और मजबूत करने के साथ-साथ घुसपैठियों की पहचान के लिए एक पारदर्शी और निष्पक्ष प्रक्रिया अपनाई जाए। उन्होंने यह भी कहा कि इस मुद्दे को राजनीतिक रंग देने के बजाय राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए।

इस मुद्दे पर ओवैसी ने स्थानीय लोगों की चिंताओं को भी रेखांकित किया। उनके अनुसार, घुसपैठ के कारण कई इलाकों में रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव बढ़ा है। उन्होंने सरकार से मांग की कि वह प्रभावित राज्यों के लिए विशेष योजनाएं लागू करे ताकि स्थानीय लोगों को राहत मिल सके।

असदुद्दीन ओवैसी का यह बयान बांग्लादेशी घुसपैठ के मुद्दे पर एक बार फिर बहस छेड़ सकता है। उनके बयान ने जहां ऐतिहासिक फैसलों की समीक्षा की जरूरत पर जोर दिया है, वहीं वर्तमान सरकार से ठोस नीतियों की मांग भी की है। यह मुद्दा न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक संतुलन के लिए भी अहम है।

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