आगरा के कलेक्ट्रेट में फर्जी शस्त्र लाइसेंस मामले ने प्रशासनिक गलियारों में हड़कंप मचा दिया है। इस मामले में रिटायर्ड लिपिक संजय कपूर को मुख्य आरोपी माना जा रहा है, जिनके साथ कलेक्ट्रेट के 5 अन्य लिपिक संदेह के घेरे में हैं। इनमें से 3 लिपिक रिटायर हो चुके हैं। विशेष कार्य बल (एसटीएफ) जल्द ही इन सभी से पूछताछ कर सकती है, क्योंकि इनका संजय कपूर के साथ गहरा संबंध रहा है।
संजय कपूर ने अपने कार्यकाल के दौरान फर्जी शस्त्र लाइसेंस जारी किए। हैरानी की बात यह है कि किसी भी लाइसेंस पर जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) के हस्ताक्षर नहीं हैं। कपूर ने अपने स्तर पर बुकलेट तैयार की और गृह मंत्रालय से मिलने वाला यूनिक आईडी नंबर भी जारी कर दिया। डाटा फीडिंग में तथ्यों को छिपाकर यह फर्जीवाड़ा किया गया, जिससे असलहों की पहचान आसान हो जाती थी। इस कार्य में दो निजी कर्मचारियों की भी अहम भूमिका रही है।
चार महीने पहले भूपेंद्र सारस्वत ने फर्जी लाइसेंस सरेंडर कर दिया था, जिसका काम वर्तमान लिपिक प्रशांत कुमार की निगरानी में हुआ। नियमों के अनुसार, लाइसेंस सरेंडर नहीं हो सकता था, लेकिन प्रशांत ने इसकी जानकारी उच्च अधिकारियों को नहीं दी। एसटीएफ ने प्रशांत से 3-4 बार पूछताछ की है और अब रिटायर्ड लिपिकों राजकुमार चौहान, रवि, जितेंद्र कुमार सहित अन्य से भी पूछताछ की तैयारी है।
संजय कपूर का कार्यकाल और वीआरएस
आगरा जिले में कुल 50 हजार शस्त्र लाइसेंस हैं, जिनमें से 28 हजार शहर में हैं। संजय कपूर तीन बार असलहा लिपिक के पद पर रहे और उन्होंने पत्रकार शोभित चतुर्वेदी के साथ मिलकर भूपेंद्र सारस्वत सहित अन्य के नाम पर फर्जी लाइसेंस जारी किए। जैसे ही एसटीएफ की जांच की भनक लगी, कपूर ने डेढ़ साल पहले स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) के लिए आवेदन कर रिटायरमेंट ले लिया।
एसटीएफ की जांच
एसटीएफ इस मामले की गहन जांच कर रही है। फर्जी लाइसेंस और अवैध हथियारों की खरीद-फरोख्त के इस हाई-प्रोफाइल मामले में संजय कपूर की तलाश तेज हो गई है। एसटीएफ मुख्यालय से इसकी मॉनिटरिंग हो रही है, लेकिन अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है, यह घोटाला आगरा प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती बन गया है, और आने वाले दिनों में जांच के और खुलासे होने की संभावना है।