Ram Mandir: जदयू सांसद की टिप्पणी पर आचार्य सत्येंद्र दास की दो टूक, बोले- मूर्ख हमेशा मूर्ख की तरह ही बोलेगा’

Ram Mandir श्रीराम मंदिर के उद्घाटन और रामलला के प्राण प्रतिष्ठा को लेकर जेडीयू सांसद कौशलेंद्र कुमार ने विवादित बयान दिया। उन्होंने उद्घाटन को लेकर बांटे जा रहे निमंत्रण पत्र पर सवाल उठाए थे। अब जदयू सांसद कौशलेंद्र कुमार की टिप्पणी पर श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के मुख्य पुजारी ने अपनी टिप्पणी दी है। उन्होंने जदयू सांसद को दो टूक बात कह दी।

TNF TODAY आगरा । उत्तर प्रदेश की अयोध्या नगरी अपने आराध्य के स्वागत के लिए तैयार है। अयोध्या में बन रहे राम मंदिर को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। कहीं इसकी तारीफ हो रही है, तो कहीं इस पर राजनीति भी हो रही है। 22 जनवरी को अयोध्या में भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर का उद्घाटन है।


श्रीराम मंदिर के उद्घाटन और रामलला के प्राण प्रतिष्ठा को लेकर जेडीयू सांसद कौशलेंद्र कुमार ने विवादित बयान दिया। उन्होंने उद्घाटन को लेकर बांटे जा रहे निमंत्रण पत्र के सवाल पर कहा कि न किसी के बेटे की शादी हो रही है। न ही किसी के पिता का श्राद्ध है, ऐसे में वो निमंत्रण देने वाले कौन होते हैं?। कौशलेंद्र कुमार के इस बयान पर अब आचार्य सत्येंद्र दास जी महाराज ने टिप्पणी की है।


आचार्य सत्येंद्र दास जी महाराज ने सुनाई खरी खोटी
जदयू सांसद कौशलेंद्र कुमार की टिप्पणी पर श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास जी महाराज ने खरी खोटी सुनाई है। उन्होंने कहा कि मूर्ख हमेशा मूर्ख की तरह ही बोलेगा। वह स्वयं मूर्ख है। निमंत्रण सम्मान पत्र है, जिसमें किसी को आमंत्रित किया जा रहा है।

मूर्खता अपने तक ही सीमित रखनी चाहिए
आचार्य सत्येंद्र दास जी महाराज ने कहा कि भगवान राम से जुड़े जो भव्य कार्य किए जा रहे हैं। जो छोटे-छोटे कार्य किए जाते हैं, हम उनके लिए निमंत्रण भेजते हैं। जिस मूर्ख को कोई ज्ञान नहीं है, वह हमेशा ऐसी भाषा का प्रयोग करेगा। ऐसे लोगों को अपनी मूर्खता अपने तक ही सीमित रखनी चाहिए।


आचार्य ने बताया अयोध्या में 6 दिसंबर को क्या हुआ था


अमर उजाला से खास बातचीत में आचार्य सत्येंद दास ने बताया कि ‘ 23 मार्च 1949 को रामलला अपने मूल स्थान में प्रकट हुए थे, जिसके बाद कोर्ट के आदेश से उनकी पूजा अर्चना होती रही। 1 मार्च 1992 को हमें उसी जगह रामलला के मुख्य पुजारी के तौर पर नियुक्त किया गया। इसके बाद विश्व हिंदू परिषद ने कारसेवा की घोषणा की। जिसके बाद 6 दिसंबर को अयोध्या में कारसेवा के लिए बहुत से लोग आए। इस दौरान भाजपा और विहिप के बहुत नेता भी वहां पहुंचे। उस समय इतनी भीड़ आ गई थी कि पूरी अयोध्या कारसेवकों से भर गई थी।’

गुस्साए कारसेवकों ने गिराया विवादित ढांचा


आचार्य ने बताया कि ‘कारसेवा के दौरान कहा गया कि जितने भी कारसेवक आए हैं, वह सरयू से जल लाकर इस चबूतरे को धोएं। यह सुनकर कारसेवक गुस्सा हो गए। उनका कहना था कि हम लोग कारसेवा में चबूतरा धुलने नहीं आए हैं। इसके बाद गुस्साए लोगों की भीड़ चबूतरे पर चढ़ गई और विवादित ढांचे को तोड़ना शुरू कर दिया। आचार्य सत्येंद्र दास बताते हैं कि तोड़ने का कोई साधन नहीं था तो स्थानीय लोगों ने गैती, हथौड़ा आदि दिए, जिनकी मदद से विवादित ढांचा तोड़ा गया। वहां तीन गुंबद थे, जिनमें से बीच वाले में रामलला विराजमान थे। वहीं अन्य दो में सीआरपीएफ के महिला और पुरुष सैनिक रहते थे। भीड़ देखकर सीआरपीएफ के जवान वहां से हट गए। कारसेवक ने विवादित ढांचे को तोड़ना शुरू किया और सुबह 11 बजे से शाम पांच बजे तक ढांचे को गिरा दिया।’

आचार्य सत्येंद्र दास ने बताया कि ‘उन्होंने रामलला को वहां से ले जाकर नीम के पेड़ के नीचे रख दिया ताकि उन्हें कोई नुकसान ना पहुंचे। जब विवादित ढांचा गिर गया तो कारसेवकों ने शाम सात बजे तक वहां पर टेंट और मंडप बना दिया, जिसके बाद रामलला को सिंहासन समेत वहां स्थापित कर दिया गया।’ इस तरह विवादित ढांचा ढहाए जाने वाले दिन करीब आठ घंटे तक रामलला नीम के पेड़ के नीचे रहे थे। आचार्य दास ने याद करते हुए बताया कि ‘अगले दिन सरकार ने कर्फ्यू का एलान कर दिया। इस पर प्रशासन से रामलला की पूजा की मांग की गई तो प्रशासन ने पूजा करने वाले सभी पुजारियों का पास बना दिया और फिर रामलला की पूजा शुरू हो गई। तब से उसी जगह रामलला की पूजा हो रही है।’

रामलला ने करीब 28 साल झेली परेशानी


आचार्य सत्येंद्र दास ने बताया कि ‘6 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद से करीब 28 सालों तक रामलला ने भी काफी परेशानी झेली। कोर्ट के आदेश से रामलला के लिए एक अस्थायी टेंट का निर्माण किया गया था लेकिन वहां धूप-दिया चलाने की मनाही थी। साथ ही बरसात में रामलला के स्थान पर पानी भी भर जाता था। इस दौरान भगवान के भोग आदि की भी परेशानी रही।’ आचार्य ने बताया कि ‘पहले रामलला के कपड़े भी रामनवमी के समय ही बदले जाते थे, जो एक साल तक चलते थे। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हालात बदले और पूरे विधि-विधान से भगवान की पूजा हो रही है और अब बस मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का इंतजार है।’

रामलला की मौजूदा प्रतिमा भी गर्भगृह में होगी स्थापित


आचार्य सत्येंद्र दास ने बताया कि ‘रामलला की जो मौजूदा प्रतिमा है, उसे भी नई प्रतिमा के साथ गर्भगृह में ही स्थान दिया जाएगा और उनकी भी पूजा अर्चना होगी। आचार्य ने बताया कि मौजूदा प्रतिमा छोटी है और उसके दूर से दर्शन नहीं हो सकते, इसलिए नई प्रतिमा बनाने का फैसला लिया गया था। बस अंतर ये रहेगा कि मौजूदा प्रतिमा चल होगी और विशेष अवसरों पर उसे गर्भगृह से बाहर निकाला जा सकेगा। वहीं नई प्रतिमा स्थायी होगी और वह गर्भगृह में ही विराजमान रहेगी।’

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