अदालत में सुनवाई शुरू होने के कुछ साल बाद पंडित सोमनाथ व्यास और रामरंग शर्मा की मौत हो गई। हिंदू पक्ष की तरफ से केस लड़ने के लिए अब सिर्फ हरिहर पांडे ही इकलौते जीवित पक्षकार बचे थे।
लगने लगा था कि हिंदू पक्ष को बीच में ही केस ड्रॉप करना पड़ेगा। लेकिन हरिहर पांडे अकेले मुकदमा लड़ते रहे। 33 साल तक हाईकोर्ट से लेकर जिला अदालतों के चक्कर काटे।
पाकिस्तान से सिर कलम करने की धमकी तक मिली, लेकिन पंडित जी डरे नहीं। दो दिन पहले… 77 साल की उम्र में उन्होंने लंबी बीमारी के कारण BHU के अस्पताल में अंतिम सांस ली.साल 2022 में ज्ञानवापी परिसर में शिवलिंग जैसी आकृति मिली तो हरिहर पांडे का 3 दशक पुराना केस फिर जिंदा हो गया। कोर्ट में पेश किए गए उनके दावे सही बैठने लगे थे। इस दरमियान उन्होंने भास्कर को दिए इंटरव्यू में कुछ ऐसी बातें बताईं थी, जो ASI के सर्वे में बिलकुल सटीक निकली। आज उनकी बातों पर दोबारा चलते हैं।
शुरुआत 33 साल पुरानी एक घटना से, जो ज्ञानवापी मस्जिद केस की जड़ बनी….
साल 1991 की बात है। बनारस के संपूर्णानंद विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे पंडित रामरंग शर्मा और सोमनाथ व्यास के साथ हरिहर पांडे बाबा विश्वनाथ मंदिर में दर्शन के लिए गए थे। महादेव पर जलाभिषेक कर जैसे ही तीनों विशालकाय नंदी के दर्शन के लिए जाने लगे, तो मस्जिद की तरफ कुछ लोगों ने उन्हें रोक लिया। दरअसल, उस वक्त नंदी की मूर्ति विवादित परिसर के हिस्से में थी।
बहस आगे बढ़ चुकी थी… रामरंग शर्मा गुस्सा गए। उन्होंने मौके पर मौजूद सिपाही को बुलाया और लोगों को शांत करने के लिए कहा लेकिन कहासुनी का कोई हल नहीं निकला। सब नंदी के दर्शन किए बगैर ही वहां से लौट गए।
काशी के 3 ब्राह्मणों को नंदी के दर्शन न करने दिए जाने के मुद्दे ने दिन-दहाड़े तूल पकड़ लिया। मंदिर के पास गुदौलिया चौराहे से लेकर BHU तक इस बात की चर्चा होने लगी। एक दिन बाद विश्वनाथ मंदिर के महंत और कुछ घर्मशालाओं ने भी इस बात का विरोध किया। इसी दिन पंडित हरिहर पांडे, सोमनाथ व्यास और रामरंग शर्मा ने कसम खाई। कसम थी-
ज्ञानवापी से मस्जिद हटाई जाए।
तीनों ने विवादित परिसर से मस्जिद को हटाने के लिए वाराणसी की सिविल कोर्ट में एक मुकदमा दायर किया। अदालत में सुनवाई शुरू होने के कुछ साल बाद पंडित सोमनाथ व्यास और रामरंग शर्मा की मौत हो गई। लेकिन हरिहर पांडे 3 दशक तक लगातार ज्ञानवापी मुकदमा लड़ते रहे।
1991 में कांग्रेस सरकार ने जब रामजन्मभूमि विवाद को छोड़कर बाकी सभी मंदिर-मस्जिद विवादों में 1947 के बाद की यथास्थिति बनाए रखने का कानून पारित किया, तब भी हरिहर पांडे और उनके साथियों ने इसके खिलाफ केस लड़ा था।
‘मस्जिद हटालो… जमीन मैं दूंगा’
केस फाइल होने के 20 साल बाद यानी साल 2021 में मुस्लिम पक्ष के लोग हरिहर पांडे के घर पर हाईकोर्ट का एक नोटिस लेकर आए थे। उन्होंने उनसे पूछा कि पांडे जी ये मामला आपस में सुलझाने के लिए क्या कोई विकल्प है। लोगों की बात सुन पांडे ने कहा था कि देखिए आप चाहते हैं कि मस्जिद बरकरार रहे और मैं चाहता हूं कि मस्जिद हटे। इसलिए विकल्प यही है कि आप मेरी 8 एकड़ जमीन ले लीजिए और उसी जगह पर मस्जिद बनवा लीजिए। मैं आपके नाम जमीन की रजिस्ट्री करवा देता हूं।
हरिहर ने कहा था- “मेरी बात सुनने के बाद प्रतिवादी पक्ष ने आज तक इसका जवाब नहीं दिया है। वो मेरी बात के पक्ष में नहीं है। वो लड़ना चाहते हैं तो लड़ें, मैं पीछे हटने वाला नहीं हूं। मैंने 1991 में मस्जिद हटवाने के लिए जब ये मुकदमा दाखिल किया,तब मुझे पता था कि यह केस लंबे समय तक लड़ा जाएगा। आज मैं हूं…कल मेरे बाद मेरे बेटे और पोते यह केस लड़ेंगे।” (यह बातें एक साल पहले भास्कर को दिए इंटरव्यू में पंडित हरिहर पांडे ने बताई थीं।)
ज्ञानवापी मामले पर हरिहर पांडे ने 1 साल पहले काशी के लक्सा इलाके में अपने आवास पर भास्कर से खुलकर बात की थी। इस दौरान उन्होंने कहा था- “मैं साल 1993 में छिपकर मस्जिद के भीतर घुस गया था। वहां नीचे की तरफ भगवान सदाशिव का विशाल शिवलिंग था। इसके अलावा इमारत में भगवान गणेश, अष्ट भैरव और नंदी समेत कई देवी-देवताओं की विखंडित मूर्तियां भी थीं। यहां तक कि मस्जिद के पश्चिमी हिस्से की दीवारों पर त्रिशूल, हिंदू चिन्हों के कई चित्र भी बने थे, जिन्हें प्लास्टर ऑफ पेरिस यानी POP की मदद से ढका गया था।”
हरिहर का दावा ASI सर्वे में सच निकला: अगस्त 2023 में ASI ने ज्ञानवापी परिसर में गुंबद और सीढ़ी का ताला खुलवाया। बेसमेंट का भी सर्वे हुआ। टीम ने तहखानों की 3D इमेजिंग-मैपिंग और डिजिटल फोटोग्राफी की। 6 अगस्त को अचानक सर्वे के दौरान गुंबदों की गोलाकार छत में नागर शैली का डिजाइन मिला। सीलिंग पर मंदिर जैसी संरचना दिखी। त्रिशूल, मूर्ति और भाले जैसी आकृति भी नजर आई। हालांकि, मुस्लिम पक्ष ऐसी किसी भी चीजों के मिलने से इनकार करता है।