समोसा-जलेबी पर पाबंदी तो बर्गर-पिज्जा पर भी लगे. मिलिंद देवड़ा का केंद्र पर सवाल

खानपान की संस्कृति पर विवाद. क्या है सरकार का रुख

कांग्रेस नेता मिलिंद देवड़ा ने केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला है. उन्होंने समोसा और जलेबी जैसे पारंपरिक भारतीय व्यंजनों पर कथित पाबंदी की चर्चा को लेकर सरकार को आड़े हाथों लिया. देवड़ा ने कहा कि अगर समोसा-जलेबी जैसे देसी खाद्य पदार्थों पर प्रतिबंध की बात हो रही है, तो बर्गर और पिज्जा जैसे विदेशी फास्ट फूड पर भी उसी तरह की कार्रवाई होनी चाहिए. यह बयान बिहार में समोसा बिक्री पर कथित रोक की खबरों के बाद आया है, जिसने सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में हंगामा मचा दिया है.

मिलिंद देवड़ा ने अपने बयान में केंद्र सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए. उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि भारतीय खानपान की संस्कृति को निशाना बनाना उचित नहीं है. अगर सरकार समोसा और जलेबी जैसे व्यंजनों को स्वास्थ्य के आधार पर प्रतिबंधित करने की सोच रही है, तो बर्गर, पिज्जा और अन्य फास्ट फूड चेन जैसे मैकडॉनल्ड्स, डोमिनोज और पिज्जा हट पर भी वही नियम लागू होने चाहिए. देवड़ा ने इसे सरकार का दोहरा रवैया करार दिया और पूछा कि क्या यह नीति बड़े कॉरपोरेट्स को फायदा पहुंचाने के लिए बनाई जा रही है.

यह मुद्दा तब गरमाया जब बिहार के कुछ हिस्सों में समोसा बिक्री पर कथित रूप से स्थानीय प्रशासन ने रोक लगाने की बात कही. हालांकि, इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन सोशल मीडिया पर इस खबर ने तूल पकड़ लिया. कई यूजर्स ने सरकार के इस कदम को भारतीय खानपान की संस्कृति पर हमला बताया. एक एक्स पोस्ट में यूजर ने लिखा कि समोसा और जलेबी पर रोक लगाना भारतीय परंपराओं को कमजोर करने की साजिश है, जबकि फास्ट फूड चेन को बढ़ावा दिया जा रहा है.

केंद्र सरकार ने अभी तक इस मामले पर कोई स्पष्ट बयान नहीं दिया है. कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि खाद्य सुरक्षा मानकों के तहत कुछ स्थानीय प्रशासनों ने अस्वच्छ परिस्थितियों में बनने वाले खाद्य पदार्थों पर कार्रवाई की है. लेकिन समोसा-जलेबी को विशेष रूप से निशाना बनाने की बात को कई लोग अतिशयोक्ति मान रहे हैं. दूसरी ओर, विपक्षी नेता इस मुद्दे को सरकार के खिलाफ हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं.

मिलिंद देवड़ा का यह बयान बिहार सहित देश के अन्य हिस्सों में सियासी बहस को हवा दे सकता है. खानपान जैसे संवेदनशील मुद्दे पर जनता की भावनाएं आसानी से भड़क सकती हैं. अगर सरकार इस मामले पर स्पष्ट रुख अपनाने में देरी करती है, तो यह विवाद और बढ़ सकता है. वहीं, देवड़ा जैसे नेताओं को इस मुद्दे के जरिए सरकार को घेरने का मौका मिल गया है. सवाल यह है कि क्या यह सिर्फ सियासी बयानबाजी है या वाकई खानपान की संस्कृति पर कोई बड़ा बदलाव होने वाला है.

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