खोदाई के दौरान ही पता चल गया था कि जो कुछ मिल रहा है इसे कोई झुठला नहीं पाएगा मगर कोर्ट के आदेश के चलते वे 16 साल तक इस मुद्दे पर नहीं बोले। अयोध्या में खोदाई को लेकर डा. बी आर मणि से विस्तार से बातचीत की गई। आइए यहां बताते हैं डा. मणि की कहानी उन्हीं की जुबानी…
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक डा. बी आर मणि अयोध्या में राम जन्मभूमि पर खोदाई करने वाली टीम का नेतृत्व कर रहे थे। वह हर दिन इस जज्बे के साथ काम में जुटते थे कि वे एक दिन इतिहास बनाएंगे। टीम दिन में खोदाई करती थी और भोजन करने के बाद रात में उस दिन की रिपोर्ट तैयार कर ढाई से तीन बजे तक मुख्यालय फैक्स से भेजते थे, फिर सोते थे।
दो से तीन घंटे ही सो पाते थे क्योंकि फिर आठ बजे से खोदाई शुरू होती थी। उन्हें खोदाई के दौरान ही पता चल गया था कि जो कुछ मिल रहा है, इसे कोई झुठला नहीं पाएगा, मगर कोर्ट के आदेश के चलते वे 16 साल तक इस मुद्दे पर नहीं बोले। अयोध्या में खोदाई को लेकर डा. बी आर मणि से विस्तार से बातचीत की गई।
पेश है संस्मरण की पहली किस्त:
आइए यहां बताते हैं डा. मणि की कहानी उन्हीं की जुबानी…
यह बात उन दिनों की है जब मैं भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) के दिल्ली मुख्यालय में अधीक्षण पुरातत्वविद के पद पर तैनात था, एक साल पहले ही मुझे ब्रेन स्ट्रोक हुआ था। खराब स्वास्थ्य को देखते हुए मैंने फील्ड का काम मना कर दिया था, मुझे पब्लिकेशन का काम मिला हुआ था।
इसी दौरान मार्च 2003 में उस समय की एएसआइ की महानिदेशक गौरी चटर्जी ने मुझे बुलाया और बताया कि अदालती आदेश पर अयोध्या में राम जन्मभूमि पर खोदाई होनी है और पूछा कि इस कार्य के लिए किसे जिम्मेदारी दी जाए। उन्होंने कहा कि मैं चाहती हूं कि ऐसा कोई अधिकारी चाहिए, जो निष्पक्ष होकर यह जिम्मेदारी निभाए।
मैंने उन्हें बताया कि कोई भी अधिकारी लगाया जा सकता है। ऐसा लगा था कि मुझे वह नहीं कहेंगी क्योंकि मेरे स्वास्थ्य के बारे में उन्हें पता था। अगले पल उन्होंने कहा कि यह जिम्मेदारी आप को निभानी होगी। मैंने बताया कि मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं है। उन्होंने कहा, जब भी आप को स्वास्थ्य संबंधी सुविधा की जरूरत होगी, अविलंब दी जाएगी।
मुझे बताया गया कि समय कम है, आप जाने की तैयारी करें। सात मार्च 2003 को उन्होंने मेरे नेतृत्व में 14 सदस्यीय टीम का गठन कर दिया और आठ मार्च 2003 को इसकी जानकारी अदालत को दे दी। टीम के अन्य सदस्य बस से अयोध्या के लिए रवाना किए गए। मैं फ्लाइट से लखनऊ पहुंचा और वहां तैनात अधीक्षण पुरातत्वविद आर एस फोनिया मुझे कार में लेकर अयोध्या के लिए रवाना हुए।
इसी बीच संदेश मिला कि फैजाबाद के डीएम आरएम श्रीवास्तव मिलना चाहते हैं, उन्होंने कार्यालय में बुलाया है। हम लोग डीएम से मिलने गए तो डीएम कार्यालय के बाहर मीडिया कर्मी मौजूद थे। वह बात करने की कोशिश में थे, डीएम से मुलाकात के दौरान हम लोगों के काम पर चर्चा हुई। हम लोग वहां मीडिया से बगैर कोई बात किए अयोध्या के लिए निकले।
अयोध्या पहुंचने पर पाया कि वहां भारी सुरक्षा थी। चूंकि राम जन्मभूमि का जीपीआर सर्वे पहले हो चुका था, उसी आधार पर हमने खोदाई के लिए स्थान चुना। जिस टीले पर कभी ढांचा था, उसी के नीचे के भाग के बारे में हमें पता करना था कि इसके नीचे जो ढांचे हैं वे किस के हैं और उसके क्या प्रमाण हैं। 12 मार्च 2003 को खोदाई शुरू हुई।
हम लोगों ने पांच गुना पांच मीटर के गड्ढे बनाने का फैसला लिया। अदालत ने एक माह खोदाई करने और 15 दिन में रिपोर्ट तैयार करने का समय दिया था। इसलिए हम लोगों ने दिन में खोदाई करने और रात में रिपोर्ट तैयार करने का फैसला किया। हमारे सामने कई तरह की चुनौतियां थीं, क्योंकि हमने इस तरह के तनाव में खोदाई का काम नहीं किया था। वहां खोदाई के समय हिंदू-मुस्लिम दो जज निरीक्षण में लगाए गए थे।
अयोध्या स्थित राम जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट प्रतिदिन सुनवाई कर रहा है। केस का जल्द फैसला सुनाने के लिए कोर्ट सप्ताह में पांच दिन सुनवाई कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने महज तीन सप्ताह में हिंदू पक्षकारों की दलीलें पूरी कर ली हैं। इस केस में पक्षकारों की दलीलें जितनी महत्वपूर्ण हैं, उतना ही महत्व राम जन्मभूमि की खुदाई के रिकॉर्ड का है। आइये जानते हैं राम जन्मभूमि की पूर्व में हुई खुदाई में क्या-क्या मिला था?
करीब 15 साल पहले भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने अयोध्या में मौजूद राम जन्मभूमि स्थल की खुदाई की थी। कई दिनों तक चली खुदाई के दौरान जमीन के नीचे से मिली चीजों का एएसआई की टीम ने वैज्ञानिक परीक्षण किया था। खुदाई और वैज्ञानिक परीक्षण पर आधारित रिपोर्ट में विवादित ढांचे के नीचे पुरातन मंदिर के अवशेष होने का दावा किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट को 2018 में सौंपी गई थी रिपोर्ट
मंदिर के पक्ष में मिले साक्ष्यों को बाकायदा फोटो के साथ एएसआई ने नवंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट को सौंपा था। एएसआई ने ये रिपोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर तैयार की थी। माना जाता है कि अयोध्या केस में हाइकोर्ट ने जो फैसला सुनाया था, उसके पीछे पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की रिपोर्ट अहम थी। जाहिर है कि वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित इस रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट भी सिरे से खारिज नहीं कर सकता।
एएसआई की खुदाई में मिली थीं ये चीजें
एएसआई की रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि विवादित ढांचे के ठीक नीचे एक बड़ी संरचना मिली है। यहां 10वीं शताब्दी से लेकर ढांचा बनाए जाने तक लगातार निमार्ण हुआ है। खुदाई में यहां जो अवशेष मिले हैं, वह ढांचे के नीचे उत्तर भारत के मंदिर होने का संकेत देते हैं। यही नहीं 10वीं शताब्दी के पहले उत्तर वैदिक काल तक की मूतिर्यों और अन्य वस्तुओं के खंडित अवशेष भी यहां खुदाई के दौरान मिले थे। इनमें शुंग काल की चूना पत्थर की दीवार और कुषाण काल की बड़ी संरचना भी शामिल है।
जियो रेडियोलॉजिकल सर्वे भी हुआ था
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पक्षकारों के विरोध के बावजूद स्वत: संज्ञान लेकर एक अगस्त 2002 और 23 अक्टूबर 2002 को विवादित स्थल का जियो रेडियोलॉजिकल सर्वे का आदेश दिया था। तोजो विकास इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड ने ये सर्वे किया था। संस्था ने 17 फरवरी 2003 को हाईकोर्ट में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। इस सर्वे रिपोर्ट में जमीन के अंदर कुछ विसंगतियां पायी गईं थी, जिसे देखते हुए हाईकोर्ट ने 5 मार्च 2003 को एएसआई को विवादित स्थल की खुदाई करने का आदेश दिया था। इसके बाद 12 मार्च से 07 अगस्त तक विवादित स्थल पर खुदाई जारी रही।
हाईकोर्ट ने पूछा था क्या मंदिर तोड़ मस्जिद बनाई गई
एएसआई ने खुदाई करने के बाद 25 अगस्त 2003 को हाईकोर्ट में रिपोर्ट दाखिल की थी। एएसआई की रिपोर्ट के निष्कर्ष में हाईकोर्ट ने पूछा था कि क्या विवादित स्थल पर कोई मंदिर या ढांचा था, जिसे तोड़ कर मस्जिद का निर्माण कराया गया था। हाईकोर्ट ने एएसआई से विवादित स्थल पर उस जगह खुदाई करने के लिए कहा था, जहां जियो रेडियोलोजिकल सर्वे में विसंगतियां पायी गई थी। जियो रेडियोलॉजिकल सर्वे के आधार पर बताया गया था कि जमीन के अंदर मौजूद चीजें ढांचा, खंभा, नींव की दीवारें, स्लैब, फर्श आदि हो सकती हैं।